अभ्रप्रकोष्ठ: Difference between revisions

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अभ्र प्रकोष्ठ में काँच का एक बेलनाकार कोष्ठक रहता है जिसका व्यास लगभग एक फुट होता है। कोष्ठक का आयतन एक पिस्टन द्वारा घटाया-बढ़ाया जा सकता है। कोष्ठक के भीतर वाष्प भरी रहती है। वाष्प का आयतन एकाएक बढ़ जाने पर उसका ताप कम हो जाता है। इसके लिए विल्सन ने पिस्टल के नीचे का स्थान निर्वात कर दिया जिससे पिस्टन शीघ्र नीचे जा जाता है और आयतन एकाएक बढ़ जाता है।
अभ्र प्रकोष्ठ में काँच का एक बेलनाकार कोष्ठक रहता है जिसका व्यास लगभग एक फुट होता है। कोष्ठक का आयतन एक पिस्टन द्वारा घटाया-बढ़ाया जा सकता है। कोष्ठक के भीतर वाष्प भरी रहती है। वाष्प का आयतन एकाएक बढ़ जाने पर उसका ताप कम हो जाता है। इसके लिए विल्सन ने पिस्टल के नीचे का स्थान निर्वात कर दिया जिससे पिस्टन शीघ्र नीचे जा जाता है और आयतन एकाएक बढ़ जाता है।
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कोष्ठक के भीतर वाष्प का आयतन बढ़ने पर जब उसका ताप घटता है तब वाष्प अभ्र में परिवर्तित हो जाती है। इस वाष्प को अभ्र में परिवर्तित होने के लिए नाभिकों की आवश्यकता होती है। इस समय अल्फा या अन्य आवेशयुक्त कण कोष्ठक में प्रवेश करें तो उनके मार्ग का चित्र बन जाएगा। उसके मार्ग को दृश्य बनाने के लिए कोष्ठक को पारद-चाप-दीप द्वारा प्रकाशित करते हैं। कोष्ठक की पेंदी काली रहती है, जिससे काली पृष्ठभूमि पर अभ्रकमार्ग सरलता से दिखाई पड़े। कोष्ठक के ऊपर कैमरा लगा रहता है जिससे चित्र लिया जाता है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=188 |url=}}</ref>
कोष्ठक के भीतर वाष्प का आयतन बढ़ने पर जब उसका ताप घटता है तब वाष्प अभ्र में परिवर्तित हो जाती है। इस वाष्प को अभ्र में परिवर्तित होने के लिए नाभिकों की आवश्यकता होती है। इस समय अल्फा या अन्य आवेशयुक्त कण कोष्ठक में प्रवेश करें तो उनके मार्ग का चित्र बन जाएगा। उसके मार्ग को दृश्य बनाने के लिए कोष्ठक को पारद-चाप-दीप द्वारा प्रकाशित करते हैं। कोष्ठक की पेंदी काली रहती है, जिससे काली पृष्ठभूमि पर अभ्रकमार्ग सरलता से दिखाई पड़े। कोष्ठक के ऊपर कैमरा लगा रहता है जिससे चित्र लिया जाता है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=188 |url=}}</ref>

Latest revision as of 07:54, 30 May 2018

अभ्रप्रकोष्ठ (क्लाउड चेंबर) उपकरण का आविष्कार स्काटलैंड के वैज्ञानिक सी.टी.आर. विल्सन ने किया है। नाभिकीय अनुसंधानों में यह बहुत उपयोगी उपकरण है। इसकी सहायता से परमाणु विखंडन अनुसंधानों में वैज्ञानिकों को कण की उपस्थिति का प्रत्यक्ष प्रमाण मिलता रहता है।

अभ्र प्रकोष्ठ में काँच का एक बेलनाकार कोष्ठक रहता है जिसका व्यास लगभग एक फुट होता है। कोष्ठक का आयतन एक पिस्टन द्वारा घटाया-बढ़ाया जा सकता है। कोष्ठक के भीतर वाष्प भरी रहती है। वाष्प का आयतन एकाएक बढ़ जाने पर उसका ताप कम हो जाता है। इसके लिए विल्सन ने पिस्टल के नीचे का स्थान निर्वात कर दिया जिससे पिस्टन शीघ्र नीचे जा जाता है और आयतन एकाएक बढ़ जाता है। विल्सन का नया अभ्रप्रकोष्ठ|thumb|250px

कोष्ठक के भीतर वाष्प का आयतन बढ़ने पर जब उसका ताप घटता है तब वाष्प अभ्र में परिवर्तित हो जाती है। इस वाष्प को अभ्र में परिवर्तित होने के लिए नाभिकों की आवश्यकता होती है। इस समय अल्फा या अन्य आवेशयुक्त कण कोष्ठक में प्रवेश करें तो उनके मार्ग का चित्र बन जाएगा। उसके मार्ग को दृश्य बनाने के लिए कोष्ठक को पारद-चाप-दीप द्वारा प्रकाशित करते हैं। कोष्ठक की पेंदी काली रहती है, जिससे काली पृष्ठभूमि पर अभ्रकमार्ग सरलता से दिखाई पड़े। कोष्ठक के ऊपर कैमरा लगा रहता है जिससे चित्र लिया जाता है।[1]

परमाणु विखंडन के अधिकांश प्रयोगों का निरीक्षण अभ्रकोष्ठक द्वारा किया गया। परमाणुनाभिक क्रियाओं की खोज भी इसी उपकरण द्वार संभव हुई।[2]

अमर अथवा अमरचंद नाम के कई व्यक्तियों के उल्लेख प्राप्य हैं-

  1. परिमल नामक संस्कृत व्याकरण के रचयिता।
  2. वायड़गच्छीय जिनदत्त सूरि के शिष्य। इन्होंने कलाकलाप, काव्य-कल्पलता-वृत्ति, छंदोरत्नावली, बालभारत आदि संस्कृत ग्रंथों का प्रणयन किया।
  3. विवेकविलास के रचयिता। ईसा की 13वीं शताब्दी में यह विद्यमान थे।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 188 |
  2. निरकार सिंह

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