ओड: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''ओड''' मिश्र छंद के ढाँचे में, सामान्यत: ओजपूर्ण स्वर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
 
Line 15: Line 15:
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
[[Category:काविता]][[Category:काव्य कोश]][[Category:पद्य साहित्य]]
[[Category:कविता]][[Category:काव्य कोश]][[Category:पद्य साहित्य]]
[[Category:हिन्दी विश्वकोश]]
[[Category:हिन्दी विश्वकोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 08:15, 20 July 2018

ओड मिश्र छंद के ढाँचे में, सामान्यत: ओजपूर्ण स्वर और उच्च शैली की, एक सार्वभौम अभिरुचिवाली विषयवस्तु से युक्त संबोधनपरक कविता है। नृत्य एवं संगीत वाद्यों के साथ गाए जानेवाले यूनानी समवेत गीतों में इसका मूल उद्गम निहित है।

यूनान में, ओडों का मुख्य आदर्श यूनानी दु:खांतों के सहगानों में प्राप्त था। छंद की दृष्टि से ये ओड अपनी रचना में अत्यंत मिश्र थे, जो तीन भागों में विभक्त हैं–स्ट्रोफ़ी (ग्रीक अर्थ उ मोड़) जो नर्तकों की दाएँ से बाएँ जाने की गति का प्रतिनिधान करते हुए ऐंटीस्ट्रोफ़ी द्वारा संतुलित होता था। यह उस समय गाया जाता था जब यह सहगान दाएँ से बाएँ की ओर मुड़ता था और इपोड, जिसे नर्तक स्थिर खड़े होकर (समवेत गीतों में, गिरजाघर की वेदी के संमुख) गाते थे और जो विशेष अवसरों पर ही होता था। एल्कमैन (630 ई.पू.) ने सर्वप्रथम स्ट्रोफ़ी को अपनी कविता पाथोनियम में सुनियोजित करके प्रस्तुत किया किंतु ऐसी योजना वाले ओड पिंडरी के नाम से प्रसिद्ध हैं क्योंकि पिंडर (522-442 ई.पू.) ने इस ढाँचे का प्रयोग अपने विजय संबंधी ओडों में किया था। ये विजय ओड ओलिंपिक खेलों में विजयी होने के अवसर पर लिखे गए थे।

ओड का आधुनिक रूप एक संबोधन काव्य जैसा है जिसका आरंभ रोमन कवि होरेस (65-8 ई.पू.) के ओड से होता है। होरेस की 'कार्मिना' (जो सदा ओडों के रूप में अनूदित हुई है) उन छंदों से युक्त है जिनको यूनानी मांडिक गीतों में माँजा गया था; विशेष रूप से साफ़ो (620 ई.पू.), एल्सीयस (611-580 ई.पू.) तथा एनैक्रियन (563-478 ई.पू.) के गीतों में। होरेस के प्राय: सभी ओड किसी वस्तु अथवा व्यक्ति को संबोधित करके लिखे गए हैं और उनमें से कुछ बड़ी गंभीरता से रोम एवं रोमन नैतिक जीवन की महत्ता का गान करते हैं।

पुनर्जागरणकालीन शास्त्रीय स्वरूप के उत्थान के साथ ही साथ अनेक देशों के कवियों ने ओड को अपनाया। फ्रांसीसी कवि पियर रोंसार्द ने पिंडरी शैली को अपने कुछ ओडों (1552-55 ई.) में अनुकृत करने की चेष्टा की। इतालवी कवि पेत्रार्क ने अपनी देशभक्तिपरक कविताओं–'इतालिआमिआ' तथा 'स्पिरितोजेंतील' (रिएज़ी को संबोधित) में होरेसीय पद्धति का अनुगमन किया।[1]

अंग्रेजी कविता में, तीन विभिन्न प्रकार के ओड निकले–(1) समान चरणोंवाली होरेसीय शैली जिसमें एक ही स्ट्रोफ़ीवाले गीत हों और प्रत्येक में विभिन्न लंबाइयोंवाली पंक्तियाँ हों। उदा.–जॉनसन, रेंडाल्फ़ हेरिक। किंतु बाद को इनमें नियमितता की ओर झुकाव मिलता है। उदा.–मेलविल कृत अपॉन क्रॉम्वेल्स रिटर्न फ्ऱाम आरयलैंड, ग्रे के लघु ओड, कॉलिंस, कीट्स, स्विनबर्न। (2) अनियमित ओड, जिनके चरण अपने ढाँचे एवं लंबाई में असमान होते हैं और उनमें प्रयुक्त लय और स्वराघात वैविध्यपूर्ण होते हैं। उदा.–काउली ('पिडरिक ओड') ड्राइडेन ('अलेग्जैंडस फ़ीस्ट', 'ओड ऑन सेंट सिसीलियाज़ डे'); वर्ड स्वर्थ ('इंटीमेशंस ऑव इम्मारटैलिटी'); कोलरिज ('फ्रांस', 'डिजेक्शन'); शेली ('ओड टु नेपुल्स'); टेनिसन, कोवेंट्री पेटमोर (ओड्स, 1868); जी.एम. हापकिंस ('द रेंक ऑव द डूशलैंड')। डब्ल्यू.वाटसन और लारेंस बनियन इस रचनाप्रकार के अति उल्लेखनीय रचयिताओं में से थे। (3) नियमित पिंडरी ओड, यथा ग्रे का प्रॉग्रेस ऑव पोएज़ी (1754) और द बार्ड (1757), वाल्टर सैवेज लैंडर का ओड टु शेली और ओड टु मिलेटस। स्विनबर्न ने इस पिंडरी शैली का प्रयोग अपने राजनीतिक ओडों में किया। आजकल ओड प्रगीत रूप में स्वीकार किए जाते हैं तथा अपेक्षाकृत लंबे भी होते हैं जिनमें कवि अपने हृदय के गंभीरतम उद्गारों को अभिव्यक्त करता है।(र.मो.)



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 295 |

संबंधित लेख