अध्वा: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
(''''अध्वा''' जगत् या सृष्टि की तांत्रिकी संज्ञा। तंत्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
'''अध्वा''' जगत् या सृष्टि की तांत्रिकी संज्ञा। तंत्रों के अनुसार अध्वा दो प्रकार का होता है- शुद्ध और अशुद्ध। शुद्ध अध्वा से सात्विक जगत् का तात्पर्य है, जिसका उपादान कारण महामाया है। शिव की परिग्रह शक्ति अचेतन और परिणामशालिनी मानी जाती है। वही 'बिंदु' कहलाती है। शुद्ध बिंदु का नाम 'महामाया' है जो सत्वमय जगत् को उत्पत्ति में उपादान कारण बनती है। अशुद्ध बिंदु का नाम 'माया' है जो प्राकृत जगत् का उपादान कारण होती है। महामाया के क्षोभ से शुद्ध जगत् (शुद्धाध्वा) की सृष्टि होती है और माया के क्षोभ से अशुद्ध प्राकृत जगत् (मायाध्वा) की उत्पत्ति होती है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=103 |url=}}</ref> | '''अध्वा''' जगत् या सृष्टि की तांत्रिकी संज्ञा। तंत्रों के अनुसार अध्वा दो प्रकार का होता है- शुद्ध और अशुद्ध। शुद्ध अध्वा से सात्विक जगत् का तात्पर्य है, जिसका उपादान कारण महामाया है। [[शिव]] की परिग्रह शक्ति अचेतन और परिणामशालिनी मानी जाती है। वही 'बिंदु' कहलाती है। शुद्ध बिंदु का नाम 'महामाया' है जो सत्वमय जगत् को उत्पत्ति में उपादान कारण बनती है। अशुद्ध बिंदु का नाम 'माया' है जो प्राकृत जगत् का उपादान कारण होती है। महामाया के क्षोभ से शुद्ध जगत् (शुद्धाध्वा) की सृष्टि होती है और माया के क्षोभ से अशुद्ध प्राकृत जगत् (मायाध्वा) की उत्पत्ति होती है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=103 |url=}}</ref> | ||
Revision as of 06:13, 12 January 2020
अध्वा जगत् या सृष्टि की तांत्रिकी संज्ञा। तंत्रों के अनुसार अध्वा दो प्रकार का होता है- शुद्ध और अशुद्ध। शुद्ध अध्वा से सात्विक जगत् का तात्पर्य है, जिसका उपादान कारण महामाया है। शिव की परिग्रह शक्ति अचेतन और परिणामशालिनी मानी जाती है। वही 'बिंदु' कहलाती है। शुद्ध बिंदु का नाम 'महामाया' है जो सत्वमय जगत् को उत्पत्ति में उपादान कारण बनती है। अशुद्ध बिंदु का नाम 'माया' है जो प्राकृत जगत् का उपादान कारण होती है। महामाया के क्षोभ से शुद्ध जगत् (शुद्धाध्वा) की सृष्टि होती है और माया के क्षोभ से अशुद्ध प्राकृत जगत् (मायाध्वा) की उत्पत्ति होती है।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 103 |