पहेली 21 जून 2020: Difference between revisions

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-[[संभवनाथ]]
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+[[ऋषभदेव]]
+[[ऋषभदेव]]
||[[चित्र:Rishabhanatha.jpg|right|border|80px|ऋषभदेव]]'ऋषभदेव' [[जैन धर्म]] के प्रथम [[तीर्थंकर]] हैं। तीर्थंकर का अर्थ होता है- 'जो तीर्थ की रचना करें। जो संसार सागर (जन्म मरण के चक्र) से [[मोक्ष]] तक के तीर्थ की रचना करें। ऋषभदेव को 'आदिनाथ' भी कहा जाता है। भगवान ऋषभदेव वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर हैं। [[ऋषभदेव]] महाराज नाभि के पुत्र थे। महाराज नाभि ने सन्तान-प्राप्ति के लिये [[यज्ञ]] किया। तप: पूत ऋत्विजों ने श्रुति के मन्त्रों से यज्ञ-पुरुष की स्तुति की। श्रीनारायण प्रकट हुए। विप्रों ने नरेश को उनके सौन्दर्य, ऐश्वर्य, शक्तिघन के समान ही पुत्र हो, यह प्रार्थना की। महाराज नाभि की महारानी की गोद में स्वयं वही परमतत्त्व प्रकट हुआ।{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ऋषभदेव]]
||[[चित्र:Rishabhanatha.jpg|right|border|80px|ऋषभदेव]]'ऋषभदेव' [[जैन धर्म]] के प्रथम [[तीर्थंकर]] हैं। तीर्थंकर का अर्थ होता है- 'जो तीर्थ की रचना करें। जो संसार सागर (जन्म मरण के चक्र) से [[मोक्ष]] तक के तीर्थ की रचना करें। ऋषभदेव को 'आदिनाथ' भी कहा जाता है। भगवान ऋषभदेव वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर हैं। [[ऋषभदेव]] महाराज नाभि के पुत्र थे। महाराज नाभि ने सन्तान-प्राप्ति के लिये [[यज्ञ]] किया। तप: पूत ऋत्विजों ने श्रुति के मन्त्रों से यज्ञ-पुरुष की स्तुति की। श्रीनारायण प्रकट हुए। विप्रों ने नरेश को उनके सौन्दर्य, ऐश्वर्य, शक्तिघन के समान ही पुत्र हो, यह प्रार्थना की। महाराज नाभि की महारानी की गोद में स्वयं वही परमतत्त्व प्रकट हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ऋषभदेव]]
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