रहिमन प्रीति सराहिये -रहीम: Difference between revisions

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सराहना ऐसे ही प्रेम की की जाय, जिसमें अन्तर न रह जाय। चूना और [[हल्दी]] मिलकर अपना-अपना [[रंग]] छोड़ देते है।<ref>न दृष्टा रहता है और न दृश्य, दोनों एकाकार हो जाते हैं।</ref>
सराहना ऐसे ही प्रेम की की जाय, जिसमें अन्तर न रह जाय। चूना और [[हल्दी]] मिलकर अपना-अपना [[रंग]] छोड़ देते है।<ref>न द्रष्टारहता है और न दृश्य, दोनों एकाकार हो जाते हैं।</ref>


{{लेख क्रम3| पिछला=रहिमन धागा प्रेम को -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=कहा करौं वैकुण्ठ लै -रहीम}}
{{लेख क्रम3| पिछला=रहिमन धागा प्रेम को -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=कहा करौं वैकुण्ठ लै -रहीम}}

Latest revision as of 05:03, 4 February 2021

‘रहिमन’ प्रीति सराहिये, मिले होत रंग दून।
ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून॥

अर्थ

सराहना ऐसे ही प्रेम की की जाय, जिसमें अन्तर न रह जाय। चूना और हल्दी मिलकर अपना-अपना रंग छोड़ देते है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. न द्रष्टारहता है और न दृश्य, दोनों एकाकार हो जाते हैं।

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