दामोदर हरी चापेकर: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 33: | Line 33: | ||
|अद्यतन= | |अद्यतन= | ||
}} | }} | ||
'''दामोदर हरी चापेकर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Damodar Hari Chapekar'', जन्म- [[24 जून]], [[1869]], [[पुणे]]; | '''दामोदर हरी चापेकर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Damodar Hari Chapekar'', जन्म- [[24 जून]], [[1869]], [[पुणे]]; बलिदान- [[18 अप्रॅल]], [[1898]]) का नाम [[भारत]] के क्रांतिकारी शहीदों में अमर है। दामोदर हरी चापेकर और उनके दोनों भाई [[बालकृष्ण चापेकर]] तथा वासुदेव चापेकर भी [[भारतीय इतिहास]] में अपनी अमिट छाप छोड़ गये हैं। ये तीनों भाई [[बाल गंगाधर तिलक]] से प्रभावित थे और '[[चापेकर बन्धु]]' नाम से प्रसिद्ध थे। | ||
==परिचय== | ==परिचय== | ||
भारत की आज़ादी की लड़ाई में प्रथम क्रांतिकारी धमाका करने वाले वीर दामोदर हरी चापेकर का जन्म [[24 जून]], [[1869]] को [[महाराष्ट्र]] में पुणे के ग्राम चिंचवाड़ में प्रसिद्ध कीर्तनकार हरिपंत चापेकर के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में हुआ था। बचपन से ही सैनिक बनने की इच्छा दामोदर हरी चापेकर के मन में थी। विरासत में कीर्तन का यश-ज्ञान उनको मिला था। महर्षि पटवर्धन और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक उनके आदर्श थे। | भारत की आज़ादी की लड़ाई में प्रथम क्रांतिकारी धमाका करने वाले वीर दामोदर हरी चापेकर का जन्म [[24 जून]], [[1869]] को [[महाराष्ट्र]] में पुणे के ग्राम चिंचवाड़ में प्रसिद्ध कीर्तनकार हरिपंत चापेकर के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में हुआ था। बचपन से ही सैनिक बनने की इच्छा दामोदर हरी चापेकर के मन में थी। विरासत में कीर्तन का यश-ज्ञान उनको मिला था। महर्षि पटवर्धन और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक उनके आदर्श थे। |
Revision as of 08:37, 18 April 2022
दामोदर हरी चापेकर
| |
पूरा नाम | दामोदर हरी चापेकर |
जन्म | 24 जून, 1869 |
जन्म भूमि | पुणे, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 18 अप्रॅल, 1898 |
अभिभावक | पिता- हरिपंत चापेकर |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी |
संबंधित लेख | चापेकर बन्धु, वासुदेव चापेकर, बालकृष्ण चापेकर |
अन्य जानकारी | बचपन से ही सैनिक बनने की इच्छा दामोदर हरी चापेकर के मन में थी। विरासत में कीर्तन का यश-ज्ञान उनको मिला था। महर्षि पटवर्धन और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक उनके आदर्श थे। |
दामोदर हरी चापेकर (अंग्रेज़ी: Damodar Hari Chapekar, जन्म- 24 जून, 1869, पुणे; बलिदान- 18 अप्रॅल, 1898) का नाम भारत के क्रांतिकारी शहीदों में अमर है। दामोदर हरी चापेकर और उनके दोनों भाई बालकृष्ण चापेकर तथा वासुदेव चापेकर भी भारतीय इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ गये हैं। ये तीनों भाई बाल गंगाधर तिलक से प्रभावित थे और 'चापेकर बन्धु' नाम से प्रसिद्ध थे।
परिचय
भारत की आज़ादी की लड़ाई में प्रथम क्रांतिकारी धमाका करने वाले वीर दामोदर हरी चापेकर का जन्म 24 जून, 1869 को महाराष्ट्र में पुणे के ग्राम चिंचवाड़ में प्रसिद्ध कीर्तनकार हरिपंत चापेकर के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में हुआ था। बचपन से ही सैनिक बनने की इच्छा दामोदर हरी चापेकर के मन में थी। विरासत में कीर्तन का यश-ज्ञान उनको मिला था। महर्षि पटवर्धन और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक उनके आदर्श थे।
'चापेकर बंधु' (दामोदर हरी चापेकर, बालकृष्ण चापेकर तथा वासुदेव चापेकर) तिलक जी को गुरुवत सम्मान देते थे। सन 1897 का साल था, पुणे नगर प्लेग जैसी भयंकर बीमारी से पीड़ित था। अभी अन्य पाश्चात्य वस्तुओं की भांति भारत के गाँव में प्लेग का प्रचार नहीं हुआ था। पुणे में प्लेग फैलने पर सरकार की और से जब लोगों को घर छोड़ कर बाहर चले जाने की आज्ञा हुई तो उनमें बड़ी अशांति पैदा हो गई। उधर शिवाजी जयंती तथा गणेश पूजा आदि उत्सवों के कारण सरकार की वहां के हिन्दुओं पर अच्छी निगाह थी। वे दिन आजकल के समान नहीं थे। उस समय तो स्वराज्य तथा सुधार का नाम लेना भी अपराध समझा जाता था। लोगों के मकान न खाली करने पर सरकार को उन्हें दबाने का अच्छा अवसर हाथ आ गया। प्लेग कमिश्नर मि. रेन्ड की ओट लेकर कार्यकर्ताओं द्वारा खूब अत्याचार होने लगे। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई और सारे महाराष्ट्र में असंतोष के बादल छा गए। इसकी बाल गंगाधर तिलक व आगरकर जी ने बहुत कड़ी आलोचना की, जिससे उन्हें जेल में डाल दिया गया।
रेन्ड का अंत
गवर्नमेन्ट हाउस, पूना में महारानी विक्टोरिया का 60वाँ राजदरबार बड़े समारोह के साथ मनाया गया। जिस समय मि. रेन्ड अपने एक मित्र के साथ उत्सव से वापस आ रहा था, इसी मौके का फायदा उठाकर दामोदर हरी चापेकर और बालकृष्ण चापेकर ने देखते-देखते रेन्ड को गोली मार दी, जिससे रेन्ड ज़मीन पर आ गिरा। उसका मित्र अभी बच निकलने का मार्ग ही तलाश रहा था कि एक और गोली ने उसका भी काम तमाम कर दिया। चारों ओर हल्ला मच गया और चापेकर बंधु उसी स्थान पर गिरफ्तार कर लिए गए। यह घटना 22 जून, 1897 को घटी।
चापेकर बंधुओं का बलिदान
अदालत में चापेकर बंधुओं पर एक और साथी के साथ अभियोग चलाया गया और सारा भेद खुल गया। एक दिन जब अदालत में चापेकर बंधुओं की पेशी हो रही थी तो उनके तीसरे भाई वासुदेव चापेकर ने वहीं पर उस सरकारी गवाह को मार दिया, जिसने दामोदर और बालकृष्ण को पकड़वाया था। उस समय किसी को इस बात का ध्यान तक न था कि वह छोटा-सा लड़का प्रतिहिंसा की आग से इतना कम्पित हो उठेगा। अंत में तीनों चापेकर बन्धु भाइयों को एक और साथी के साथ फांसी दे दी गई। इस प्रकार अपने जीवन दान के लिए उन्होंने देश या समाज से कोई भी प्रतिदान की चाह नहीं रखी।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
- REDIRECTसाँचा:स्वतन्त्रता सेनानी