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*मूल्यवान् होना, मूल्य रखना, मूल्य लगाना,'''-परीक्षका''' पत्र न सन्ति देशे नावन्ति रत्नानि समुद्रजानि-सुभाषि।<ref>{{पुस्तक संदर्भ|पुस्तक का नाम=संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश|लेखक=वामन शिवराम आप्टे|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=कमल प्रकाशन, [[नई दिल्ली]]-110002|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=102|url=|ISBN=}}</ref>
*मूल्यवान् होना, मूल्य रखना, मूल्य लगाना,-परीक्षका पत्र न सन्ति देशे नावन्ति रत्नानि समुद्रजानि-सुभाषि।<ref>{{पुस्तक संदर्भ|पुस्तक का नाम=संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश|लेखक=वामन शिवराम आप्टे|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=कमल प्रकाशन, [[नई दिल्ली]]-110002|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=102|url=|ISBN=}}</ref>





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अर्घ्‌ (भ्वा. पर.) [अर्घति, अर्घित]

  • मूल्यवान् होना, मूल्य रखना, मूल्य लगाना,-परीक्षका पत्र न सन्ति देशे नावन्ति रत्नानि समुद्रजानि-सुभाषि।[1]


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 102 |

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