सीज़ोफ़्रेनिया: Difference between revisions

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सीजोफ्रेनिया एक मानसिक बीमारी (मेंटल डिसआर्डर) की स्थिति है, जिसमें पीड़ित व्यक्ति को हमेशा तरह-तरह आवाजें सुनाई देती रहती हैं साथ ही उन्हें लगता है कि दूसरे लोग उनके खिलाफ षड़यंत्र कर रहे हैं और कई बार तो यह खुद को भगवान भी मान लेते हैं। प्रारंभिक स्थिति में मरीज गुमशुम रहता है, लोगों पर शक करने लगता है। कई बार वह आत्महत्या या किसी की हत्या तक का विचार करता है। इस स्थिति में उनके सोचने समझने की शक्ित गड़बड़ा जाती है और वे वहम के शिकार हो जाते हैं। उनको लगता है कि कोई उनको आत्महत्या के लिए उकसा रहा है। मरीज को हर वक्त डर लगता रहता है। वह काफी गुस्सा करता है। यह एक लंबी और कष्टसाध्य बीमारी है। सीजोफ्रेनिया में पीड़ित व्यक्ित भ्रम में जीता है और जिन यादों या बातों में वह खो जाता है, उन्हें ही हकीकत मानने लगता है। भले वह दौर दो-चार सौ साल पुराना ही क्यों न हो। वह अपने बुने भ्रम में फंसता चला जाता है। सोच-समझ, भावनाओं और क्रियाओं के बीच कोई तालमेल नहीं रहता है। अकेले रहने की उसे आदत से हो जाती है। अक्सर ऐसे रोगी रोमर्रा की क्रियाएं करने में भी असमर्थ हो जाते हैं। कुछ लोगों को भूत-प्रेत का भी अहसास होने लगता है। जब ये रोग ज्यादा बढ़ जाता है तो व्यक्ति की स्थिति विक्षिप्तों की तरह हो जाती है।  
सीजोफ्रेनिया एक मानसिक बीमारी (मेंटल डिसआर्डर) की स्थिति है, जिसमें पीड़ित व्यक्ति को हमेशा तरह-तरह आवाजें सुनाई देती रहती हैं साथ ही उन्हें लगता है कि दूसरे लोग उनके खिलाफ षड़यंत्र कर रहे हैं और कई बार तो यह खुद को भगवान भी मान लेते हैं। प्रारंभिक स्थिति में मरीज गुमशुम रहता है, लोगों पर शक करने लगता है। कई बार वह आत्महत्या या किसी की हत्या तक का विचार करता है। इस स्थिति में उनके सोचने समझने की शक्ति गड़बड़ा जाती है और वे वहम के शिकार हो जाते हैं। उनको लगता है कि कोई उनको आत्महत्या के लिए उकसा रहा है। मरीज को हर वक्त डर लगता रहता है। वह काफी गुस्सा करता है। यह एक लंबी और कष्टसाध्य बीमारी है। सीजोफ्रेनिया में पीड़ित व्यक्ति भ्रम में जीता है और जिन यादों या बातों में वह खो जाता है, उन्हें ही हकीकत मानने लगता है। भले वह दौर दो-चार सौ साल पुराना ही क्यों न हो। वह अपने बुने भ्रम में फंसता चला जाता है। सोच-समझ, भावनाओं और क्रियाओं के बीच कोई तालमेल नहीं रहता है। अकेले रहने की उसे आदत से हो जाती है। अक्सर ऐसे रोगी रोमर्रा की क्रियाएं करने में भी असमर्थ हो जाते हैं। कुछ लोगों को भूत-प्रेत का भी अहसास होने लगता है। जब ये रोग ज्यादा बढ़ जाता है तो व्यक्ति की स्थिति विक्षिप्तों की तरह हो जाती है।  


ऐसे मरीाों का मनोजगत भयानक संकट से घिरा रहता है। हालांकि यह एक सामान्य बीमारी है, जो कई प्रसिद्ध फिल्म स्टार (परवीन बॉबी), लेखक, कवि और राजनेता भुगत चुके है। वर्तमान समय में गंभीर मनोरोग सीजोफ्रेनिया के मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। वर्तमान समय में इस बीमारी के एक करोड़ मरीज हैं। यह समस्या हर सौ में से एक व्यक्ित में पाई जाती है। अक्सर इस बीमारी के लक्षण 20 या 40 से 45 साल के बीच (किशोरावस्था या युवावस्था के प्रारंभ में) देखने को मिलते हैं। लेकिन इस रोग को ठीक कर पाना काफी मुश्किल होता है। समय से पहचान हो जाने पर रोगी एक-दो साल में ठीक हो जाता है। पर कई बार सालों इलाज चलता है।  
ऐसे मरीजो का मनोजगत भयानक संकट से घिरा रहता है। हालांकि यह एक सामान्य बीमारी है, जो कई प्रसिद्ध फिल्म स्टार (परवीन बॉबी), लेखक, कवि और राजनेता भुगत चुके है। वर्तमान समय में गंभीर मनोरोग सीजोफ्रेनिया के मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। वर्तमान समय में इस बीमारी के एक करोड़ मरीज हैं। यह समस्या हर सौ में से एक व्यक्ति में पाई जाती है। अक्सर इस बीमारी के लक्षण 20 या 40 से 45 साल के बीच (किशोरावस्था या युवावस्था के प्रारंभ में) देखने को मिलते हैं। लेकिन इस रोग को ठीक कर पाना काफी मुश्किल होता है। समय से पहचान हो जाने पर रोगी एक-दो साल में ठीक हो जाता है। पर कई बार सालों इलाज चलता है।  


सीजोफ्रेनिया होने के अभी तक निश्चित कारण पता नहीं चल सका है। हालांकि इतना जरूर है कि इसकी एक से ज्यादा वजहे हो सकती है। इसमें आनुवांशिक कारण, मनोवैज्ञानिक कारण यथा पारिवारिक तनाव, तनावपूर्ण जीवन, सामाजिक, सांस्कृतिक प्रभाव, बचपन में क्षतिपूर्ण विकास, गर्भावस्था और प्रसूति के दौरान तकलीफ इसका प्रमुख कारण अब तक माना जाता है। ये डिप्रेशन, टेशन, किसी बात या घटना से आघात आदि से किसी को भी हो सकता है। अमूमन सीजोफ्रेनिया गर्मी के सीजन में ज्यादा सामने आता है। वही सीजोफ्रेनिया होने के तकनीकी कारण ये है कि मस्तिष्क के चेतन तंतुओं के बीच के रासायनिक तत्वों में होने वाले परिवर्तन खास कर डोपामिन में परिवर्तन है।  
सीजोफ्रेनिया होने के अभी तक निश्चित कारण पता नहीं चल सका है। हालांकि इतना जरूर है कि इसकी एक से ज्यादा वजहे हो सकती है। इसमें आनुवांशिक कारण, मनोवैज्ञानिक कारण यथा पारिवारिक तनाव, तनावपूर्ण जीवन, सामाजिक, सांस्कृतिक प्रभाव, बचपन में क्षतिपूर्ण विकास, गर्भावस्था और प्रसूति के दौरान तकलीफ इसका प्रमुख कारण अब तक माना जाता है। ये डिप्रेशन, टेशन, किसी बात या घटना से आघात आदि से किसी को भी हो सकता है। अमूमन सीजोफ्रेनिया गर्मी के सीजन में ज्यादा सामने आता है। वही सीजोफ्रेनिया होने के तकनीकी कारण ये है कि मस्तिष्क के चेतन तंतुओं के बीच के रासायनिक तत्वों में होने वाले परिवर्तन खास कर डोपामिन में परिवर्तन है।  


ऐसे मरीजों को अंत में मेंटल हास्पिटल भेजना पड़ता है, जबकि प्रारंभिक स्थिति में उपचार करने पर बीमारी पूरी तरह ठीक हो जाती है। ऐसे मामले संज्ञान में आने पर मरीजों के साथ बेहतर व्यवहार किया जाय। उसे तनाव न दिया जाय। उसकी हर बात को सुनने के बाद वह जैसा सुनना चाहता है उसी के अनुसार बातचीत कर उसे संतुष्ट करे। इसके साथ ही उचित चिकित्सक से परामर्श के साथ ही निश्चित वक्त पर दवा वगैरह देते रहे। इस रोग के दौरान एंटीसाईकोटिक दवायें, इंजेक्शन, ईसीटी से इसे दूर किया जा सकता है। उचित इलाज से सीजोफ्रेनिया का मरीज सामान्य जिंदगी मजे से जी सकता है। ये साध्य रोग है और दवाओं के जरिये इस रोग का खात्मा संभव है। हालांकि रोग ठीक होने के बाद ये दोबारा भी हो सकता है।
ऐसे मरीजों को अंत में मेंटल हास्पिटल भेजना पड़ता है, जबकि प्रारंभिक स्थिति में उपचार करने पर बीमारी पूरी तरह ठीक हो जाती है। ऐसे मामले संज्ञान में आने पर मरीजों के साथ बेहतर व्यवहार किया जाय। उसे तनाव न दिया जाय। उसकी हर बात को सुनने के बाद वह जैसा सुनना चाहता है उसी के अनुसार बातचीत कर उसे संतुष्ट करे। इसके साथ ही उचित चिकित्सक से परामर्श के साथ ही निश्चित वक्त पर दवा वगैरह देते रहे। इस रोग के दौरान एंटीसाईकोटिक दवायें, इंजेक्शन, ईसीटी से इसे दूर किया जा सकता है। उचित इलाज से सीजोफ्रेनिया का मरीज सामान्य जिंदगी मजे से जी सकता है। ये साध्य रोग है और दवाओं के जरिये इस रोग का खात्मा संभव है। हालांकि रोग ठीक होने के बाद ये दोबारा भी हो सकता है।
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Revision as of 19:50, 16 November 2010

सीजोफ्रेनिया एक मानसिक बीमारी (मेंटल डिसआर्डर) की स्थिति है, जिसमें पीड़ित व्यक्ति को हमेशा तरह-तरह आवाजें सुनाई देती रहती हैं साथ ही उन्हें लगता है कि दूसरे लोग उनके खिलाफ षड़यंत्र कर रहे हैं और कई बार तो यह खुद को भगवान भी मान लेते हैं। प्रारंभिक स्थिति में मरीज गुमशुम रहता है, लोगों पर शक करने लगता है। कई बार वह आत्महत्या या किसी की हत्या तक का विचार करता है। इस स्थिति में उनके सोचने समझने की शक्ति गड़बड़ा जाती है और वे वहम के शिकार हो जाते हैं। उनको लगता है कि कोई उनको आत्महत्या के लिए उकसा रहा है। मरीज को हर वक्त डर लगता रहता है। वह काफी गुस्सा करता है। यह एक लंबी और कष्टसाध्य बीमारी है। सीजोफ्रेनिया में पीड़ित व्यक्ति भ्रम में जीता है और जिन यादों या बातों में वह खो जाता है, उन्हें ही हकीकत मानने लगता है। भले वह दौर दो-चार सौ साल पुराना ही क्यों न हो। वह अपने बुने भ्रम में फंसता चला जाता है। सोच-समझ, भावनाओं और क्रियाओं के बीच कोई तालमेल नहीं रहता है। अकेले रहने की उसे आदत से हो जाती है। अक्सर ऐसे रोगी रोमर्रा की क्रियाएं करने में भी असमर्थ हो जाते हैं। कुछ लोगों को भूत-प्रेत का भी अहसास होने लगता है। जब ये रोग ज्यादा बढ़ जाता है तो व्यक्ति की स्थिति विक्षिप्तों की तरह हो जाती है।

ऐसे मरीजो का मनोजगत भयानक संकट से घिरा रहता है। हालांकि यह एक सामान्य बीमारी है, जो कई प्रसिद्ध फिल्म स्टार (परवीन बॉबी), लेखक, कवि और राजनेता भुगत चुके है। वर्तमान समय में गंभीर मनोरोग सीजोफ्रेनिया के मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। वर्तमान समय में इस बीमारी के एक करोड़ मरीज हैं। यह समस्या हर सौ में से एक व्यक्ति में पाई जाती है। अक्सर इस बीमारी के लक्षण 20 या 40 से 45 साल के बीच (किशोरावस्था या युवावस्था के प्रारंभ में) देखने को मिलते हैं। लेकिन इस रोग को ठीक कर पाना काफी मुश्किल होता है। समय से पहचान हो जाने पर रोगी एक-दो साल में ठीक हो जाता है। पर कई बार सालों इलाज चलता है।

सीजोफ्रेनिया होने के अभी तक निश्चित कारण पता नहीं चल सका है। हालांकि इतना जरूर है कि इसकी एक से ज्यादा वजहे हो सकती है। इसमें आनुवांशिक कारण, मनोवैज्ञानिक कारण यथा पारिवारिक तनाव, तनावपूर्ण जीवन, सामाजिक, सांस्कृतिक प्रभाव, बचपन में क्षतिपूर्ण विकास, गर्भावस्था और प्रसूति के दौरान तकलीफ इसका प्रमुख कारण अब तक माना जाता है। ये डिप्रेशन, टेशन, किसी बात या घटना से आघात आदि से किसी को भी हो सकता है। अमूमन सीजोफ्रेनिया गर्मी के सीजन में ज्यादा सामने आता है। वही सीजोफ्रेनिया होने के तकनीकी कारण ये है कि मस्तिष्क के चेतन तंतुओं के बीच के रासायनिक तत्वों में होने वाले परिवर्तन खास कर डोपामिन में परिवर्तन है।

ऐसे मरीजों को अंत में मेंटल हास्पिटल भेजना पड़ता है, जबकि प्रारंभिक स्थिति में उपचार करने पर बीमारी पूरी तरह ठीक हो जाती है। ऐसे मामले संज्ञान में आने पर मरीजों के साथ बेहतर व्यवहार किया जाय। उसे तनाव न दिया जाय। उसकी हर बात को सुनने के बाद वह जैसा सुनना चाहता है उसी के अनुसार बातचीत कर उसे संतुष्ट करे। इसके साथ ही उचित चिकित्सक से परामर्श के साथ ही निश्चित वक्त पर दवा वगैरह देते रहे। इस रोग के दौरान एंटीसाईकोटिक दवायें, इंजेक्शन, ईसीटी से इसे दूर किया जा सकता है। उचित इलाज से सीजोफ्रेनिया का मरीज सामान्य जिंदगी मजे से जी सकता है। ये साध्य रोग है और दवाओं के जरिये इस रोग का खात्मा संभव है। हालांकि रोग ठीक होने के बाद ये दोबारा भी हो सकता है।

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