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| संसार में अत्यन्त सूखा पड़ने पर [[गौतम]], उनकी पत्नी [[अहल्या]] तथा उनके शिष्यों ने घोर तप किया। [[वरुण देवता|वरुण]] ने प्रसन्न होकर एक हाथ भर गर्त (कुंड) प्रदान किया, जिसका पानी कभी समाप्त नहीं हो सकता था तथा एक अक्षय कमल दिया। उसके निकट अनेक मुनि आकर रहने लगे। एक बार गौतम के शिष्य बिना पानी भरे वहाँ से लौट आये, क्योंकि मुनि-पत्नियों ने पहले पानी भरने की इच्छा प्रकट की थी। अहल्या ने उनके पास जाकर पानी भरवा दिया। मुनि-पत्नियों ने झूठ बोला कि शिष्य उनसे बुरा-भला कहकर गये हैं। अत: समस्त मुनि गौतम से रुष्ट हो गए तथा [[गणेश]] के समझाने पर भी नहीं समझे। एक दिन खेत ख़राब करती हुई [[गाय]] को गौतम ने तिनके से हटाना चाहा तो वह [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर गिर गई तथा सबने गौतम को मिलकर गौ-हत्यारा माना। गौतम और अहल्या दूर निर्जन स्थान में पंद्रह दिन तक पड़े रहे, फिर मुनियों के पास पहुँचे। उन्होंने अपनी पत्नियों की बात को सच जानकर [[शिव]] की तपस्या करने को कहा। वैसा करने पर शिव ने पुत्र और गणों सहित प्रकट होकर गौतम को वर मांगने के लिए कहा। गौतम के मांगने पर शिव ने उन्हें नारी रूपा [[गंगा]] प्रदान की। गौतम ने गंगा की आराधना करके पाप से मुक्ति प्राप्त की। गौतम तथा मुनियों को गंगा ने पूर्ण पवित्र कर दिया। वह [[गौतमी]] कहलायी। गौतमी नदी के किनारे '''त्र्यंबकम शिवलिंग''' की स्थापना की गई, क्योंकि इसी शर्त पर वह वहाँ ठहरने के लिए तैयार हुई थीं।
| | #REDIRECT[[त्र्यंम्बक ज्योतिर्लिंग]] |
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| <references/>
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| ==संबंधित लेख==
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| {{कथा}}
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| [[Category:कथा साहित्य]]
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| [[Category:शिव]]
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| [[Category:कथा साहित्य कोश]]
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| [[Category:पौराणिक कोश]]
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