हेरात: Difference between revisions
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'''हेरात''', यह [[अफ़ग़ानिस्तान]] का एक प्रान्तीय नगर है। यह देश के पश्चिम में है और ऐतिहासिक महत्व का शहर है। यह खोरसन क्षेत्र का हिस्सा है। यह जिस प्रान्त की राजधानी था, उसे ग्रीक लोग '''एरिया''' कहते थे। यह एरिया [[हिन्दूकुश]] के ठीक पूर्व में है और सामरिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। उत्तर-पश्चिम में इसे भारतवर्ष की प्राकृतिक सीमा माना जाता है। ईसवी पूर्व छठी शताब्दी में [[सेल्युकस]] ने यह प्रदेश [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] को दे दिया और मौर्य साम्राज्य के पतन तक यह प्रदेश उसके अधीन रहा। इसके बाद ईसवी सन् की प्रारम्भिक शताब्दियों में इस उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र पर [[यवन]] और [[पार्थियन]] राजाओं का राज्य हो गया। इसके बाद हेरात कभी भारतीय साम्राज्य के अंतर्गत नहीं रहा। [[फ़ारस]] और अफ़ग़ानिस्तान के बीच इस प्रदेश के लिए बराबर लड़ाइयाँ होती रहीं। अन्त में 1863 ई. में [[दोस्त मुहम्मद]] ने इसे अपने राज्य में मिला लिया। [[अंग्रेज़]] राजनीतिज्ञों और युद्ध विशारदों का अग्रसर नीति का पोषक दल शुरु से इस पक्ष में रहा कि इस भू-भाग को अपने अधिकार में कर लेना चाहिए। इसी उद्देश्य से पहला और दूसरा अफ़ग़ान युद्ध हुआ। परन्तु इस नीति में सफलता न मिल सकी। उत्तर-पश्चिम में प्राकृतिक सीमा की नीति के पोषकों का मनोरथ कभी पूरा नहीं हो सका। | |||
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हेरात, यह अफ़ग़ानिस्तान का एक प्रान्तीय नगर है। यह देश के पश्चिम में है और ऐतिहासिक महत्व का शहर है। यह खोरसन क्षेत्र का हिस्सा है। यह जिस प्रान्त की राजधानी था, उसे ग्रीक लोग एरिया कहते थे। यह एरिया हिन्दूकुश के ठीक पूर्व में है और सामरिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। उत्तर-पश्चिम में इसे भारतवर्ष की प्राकृतिक सीमा माना जाता है। ईसवी पूर्व छठी शताब्दी में सेल्युकस ने यह प्रदेश चन्द्रगुप्त मौर्य को दे दिया और मौर्य साम्राज्य के पतन तक यह प्रदेश उसके अधीन रहा। इसके बाद ईसवी सन् की प्रारम्भिक शताब्दियों में इस उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र पर यवन और पार्थियन राजाओं का राज्य हो गया। इसके बाद हेरात कभी भारतीय साम्राज्य के अंतर्गत नहीं रहा। फ़ारस और अफ़ग़ानिस्तान के बीच इस प्रदेश के लिए बराबर लड़ाइयाँ होती रहीं। अन्त में 1863 ई. में दोस्त मुहम्मद ने इसे अपने राज्य में मिला लिया। अंग्रेज़ राजनीतिज्ञों और युद्ध विशारदों का अग्रसर नीति का पोषक दल शुरु से इस पक्ष में रहा कि इस भू-भाग को अपने अधिकार में कर लेना चाहिए। इसी उद्देश्य से पहला और दूसरा अफ़ग़ान युद्ध हुआ। परन्तु इस नीति में सफलता न मिल सकी। उत्तर-पश्चिम में प्राकृतिक सीमा की नीति के पोषकों का मनोरथ कभी पूरा नहीं हो सका।
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