पंचक्लेश

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पंचक्लेश का उल्लेख पतंजलि के 'योगसूत्र' में आया है। योगसूत्र के अनुसार क्लेश के पाँच भेद माने गये हैं-'अविद्या' (मूर्खता या अज्ञान), 'अस्मिता', 'अहंकार राग' (प्रीति), 'द्वेष' (शत्रुता) और 'अभिनिवेश' (मृत्युमय)।[1] 'पतंजलि योगसूत्र' में कहा गया है कि, पंचक्लेश ही पाँच बंधनों के समान हमें इस संसार में बांधे रखते है। इनमें से अविद्या ही कारण है, और शेष चार क्लेश इसके कार्य है।

  • मानव शरीर 17 घटकों से मिलकर बना है।
  • यह शरीर ही पुनर्जन्म का कारण है, क्योंकि सूक्ष्म शरीर मन प्रधान है, उसकी वासना नहीं मरती है।
  • मनुष्य जन्म लेता है, मरता है, और फिर जन्म लेता है।
  • इस प्रकार जन्म-मरण का यह चक्र चलता ही रहता है, क्योंकि न अविद्या मरती है, और न ही मन[2] मरती है।
  • इसी कारण वह हर जन्म में 'आशा-तृष्णा' में फँसा रहता है।
  • वस्तुत: 'अविद्या' ही हमारे दु:ख का एकमात्र कारण है।
  • अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश ये क्लेश के पाँच रूप हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 458 |

  1. प्रा.भा.सं.कोश, पृष्ठ 212
  2. (अर्थात् इन्द्रियजनित वासनाएँ)

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