दलाईलामा तेनजिन ग्यात्सो

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बौद्ध धर्म दुनिया के धर्मों का चौथा सबसे बड़ा धर्म है जिसके 375 लाख अनुयायी है। बौद्ध धर्म के धर्मगुरु को दलाई लामा कहा जाता है। बौद्ध धर्म के 14वें दलाईलामा तिब्बती धर्मगुरु तेनजिन ग्यात्सो (Tenzin Gyatso) है। तेनजिन ग्यात्सो (Tenzin Gyatso) तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष और आध्यात्मिक गुरू हैं। दलाईलामा (Dalai Lama) का जन्म 6 जुलाई 1935 को पूर्वोत्तर तिब्बत के तक्तेसेर (Taktser) टोले में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उनका बचपन का नाम ल्हामो थोंडुप था जिसका अर्थ है मनोकामना पूरी करने वाली देवी। बाद में उनका नाम तेंजिन ग्यात्सो रखा गया। उन्हें मात्र दो साल की उम्र में 13वें दलाई लामा थुबटेन ज्ञायात्सो (13th Dalai Lama, Thubten Gyatso.) का अवतार बताया गया था। छह साल की उम्र में ही मठ के अंदर उनको शिक्षा दी जाने लगी। अपने अध्ययन काल के दौरान से ही वह बहुत कर्मठ और समझदार व्यक्तित्व के स्वामी थे।

चौदहवें दलाईलामा का बचपन काफी उथल-पुथल भरा रहा है। तेरहवें दलाईलामा थुप्टेन ग्यात्सो के 1933 में देहांत के बाद तिब्बती परंपराओं के अनुसार चौदहवें दलाईलामा की खोज शुरू हुई। इसी कड़ी में उच्च तिब्बती लामाओं का एक दल उत्तर पूर्वी तिब्बत के आम्दो प्रांत में पहुंचा। दल जब इस प्रांत के कुंबुम पहुंचा तो उसके सदस्यों को यह विश्वास हो चुका था कि वह सही रास्ते पर हैं। कुंबुम में ही दल की मुलाकात तेंजिन ग्यात्सो से हुई। उस बालक को देख इस बात का आभास हुआ कि यही चौदहवें दलाईलामा का अवतार हैं। अंतिम फैसला लिया गया और समाचार तिब्बत की राजधानी ल्हासा भेजा गया। इसके बाद उन्हें माता-पिता सहित कुंबुम मठ लाया गया जहां विशेष समारोह में दलाईलामा के अवतार तेंजिग ग्यात्सो का अभिषेक किया गया।

इसके बाद चौदहवें दलाईलामा की शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध कुंबुम मठ में ही किया गया। 1939 में जब दलाईलामा चार वर्ष के थे तो उन्हें राजधानी ल्हासा के लिए रवाना कर दिया गया। ल्हासा के निकट कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के दल ने उनसे भेंट की। वहीं पर एक विशेष समारोह में उन्हें विधिवत तिब्बत का आध्यात्मिक नेता घोषित कर दिया गया। उसके बाद उन्हें नोरबूलिंगा महल ले जाया गया। उसके बाद से ही उनके जीवन में उथल-पुथल शुरू हुई। चीन के तिब्बत में बढ़ते हस्तक्षेप के कारण दलाईलामा को बहुत छोटी उम्र में ही कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। अंतत: वर्ष 1959 में उन्हें भारत में शरण लेनी पड़ी। तब से लेकर वे हिमाचल प्रदेश के मैक्लोडगंज में रह रहे हैं।


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