वास्तुशास्त्र- राजभवन के भेद

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राजभवन उत्तम आदि भेद से पाँच प्रकार का कहा गया है। एक सौ आठ हाथ के विस्तार वाला राजभवन उत्तम माना गया है। अन्य चार प्रकार के भवनों में विस्तार क्रमश: आठ-आठ हाथ कम होता जाता है; किंतु पाँचों प्रकार के भवनों में लम्बाई विस्तार के चतुर्थांश से अधिक होती है। अब मैं युवराज के पाँच प्रकार के भवनों का वर्णन कर रहा हूँ। उसमें उत्तम भवन की चौड़ाई क्रमश: छ:-छ: हाथ कम होती जाती है। इन पाँचों भवनों की लम्बाई चौड़ाई से एक तिहाई अधिक कही गयी है। इसी प्रकार अब मैं सेनापति के पाँच प्रकार के भवनों का वर्णन कर रहा हूँ। उसके उत्तम भवन की चौड़ाई चौंसठ हाथ की मानी गयी है। अन्य चार भवनों की चौड़ाई क्रमश: छ:-छ: हाथ कम होती जाती है। इन पाँचों की लम्बाई चौड़ाई के षष्ठंश से अधिक होनी चाहिये। अब मैं मन्त्रियों के भी पाँच प्रकार के भवन बतला रहा हूँ। उनमें उत्तम भवन का विस्तार साठ हाथ होता है तथा अन्य चार क्रमश: चार-चार हाथ कम चौड़े होते हैं। इन पाँचों की लम्बाई चौड़ाई के अष्टांश से अधिक कही गयी है।

अब मैं सामन्त, छोटे राजा और अमात्य (छोटे मन्त्री) लोगों के पाँच प्रकार के भवनों को बतलाता हूँ। इनमें उत्तम भवन की चौड़ाई अड़तालीस हाथ की होनी चाहिये तथा अन्य चारों की चौड़ाई क्रमश: चार-चार हाथ कम कही गयी है। इन पाँचों भवनों की लम्बाई चौड़ाई की अपेक्षा सवाया अधिक कही गयी है। अब शिल्पकार, कंचुकी और वेश्याओं के पाँच प्रकार के भवनों को सुनिये। इन सभी भवनों की चौड़ाई अट्ठाईस हाथ कही गयी हैं अन्य चारों भवनों की चौड़ाई में क्रमश: दो-दो हाथ की न्यूनता होती है। लम्बाई चौड़ाई से दुगुनी कही गयी है।[1]



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