धारणा

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धारणा भारतीय दर्शन की योग पद्धति के आठ अंगों अथवा सहायक गतिविधियों में से छठा, जो साधक को समाधि[1] की स्थिति प्राप्त करने की दिशा में सहायक होता है।

  • धारणा में मस्तिक किसी एक बाहरी वस्तु पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • धारणा की पर्याप्त लंबी अवधि से गहन या अधिक ध्यान केंद्रित करने की स्थिति, ध्यान उत्पन्न होती है, जिसमें ध्यानकर्ता और ध्यान की वस्तु के बीच एकात्म होने की प्रवृत्ति विकसित होती है।
  • ये दोनों स्थितियाँ और समाधि की अंतिम स्थिती इतनी मिलती-जुलती है कि योग सिद्धांत में उल्लिखित अंतर की स्पष्ट जानकारी रखने वाले लोगो के अलावा किसी अन्य के द्वारा इनके बीच अंतर पाना कठिन है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आत्म एकाग्रता
  2. उदाहरणार्थ: बाहरी वस्तु, आंतरिक वस्तु और मानसिक स्थिती, अर्द्ध चेतना प्रतीतियाँ आदि

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