जीण माता धाम

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जीण माता धाम जीण माता का निवास है। माता दुर्गा की अवतार है। यह जयपुर से 115 किलोमीटर दूर सुरम्य अरावली पहाड़ियों में बसी है। जीण माता के पवित्र मंदिर हजारों साल पुराने है। जीण माता (Jeen Mata) के बारे में अभी तक कोई पुख्ता जानकारी मौजूद नही है फ़िर भी कहते है की माता का मन्दिर कम से कम 1000 साल पुराना है। लाखों भक्तों हर वर्ष यहाँ माता के दर्शन के लिए आते हैं। भक्तों की मण्डली द्विवार्षिक नवरात्रि समारोह के दौरान एक बहुत रंगीन नज़र हो जाती है जीणमाता मंदिर घने जंगल से घिरा हुआ है। इसकी पूर्ण और वास्तविक नाम जयन्तीमाता है। यहाँ सीकर से गौरियाँ आकर जीणमाता की ओर जाने वाली सड़क से जाया जा सकता है। सीकर से जीणमाता 30 किलोमीटर दूर है। एक प्राचीन जीणमाता शक्ति की देवी को समर्पित मंदिर है। यह कहा जाता है कि इस मंदिर हजार साल पहले बनाया गया था। लाख श्रद्धालुओं के यहाँ हर साल चैत्र और अश्विन माह में नवरात्रि मेले के समय में एकत्र होते है।

लोक कथाओं के अनुसार जीण माता का जन्म अवतार चुरू जिले के घांघू गाँव में हुआ था। जीण माता के बड़े भाई का नाम हर्ष था। माता जीण को शक्ति का अवतार माना गया है और हर्ष को भगवन शिव का अवतार माना गया है। कहा जाता है की जीणमाता ओर हर्ष दोनों भाई-बहन थे जिनमे आपस में बहुत प्रेम था। राज कुमारी जीण बाई को संदेह मात्र हुआ की उनके भाई हर्ष नाथ उनसे अधिक उनकी भाभी को प्रेम करने लगे हैं। एक समय की बात थी जब भाई हर्ष का विवाह हो गया। एक दिन दोनों ननद ओर भाभी पानी लाने के लिए गई तो दोनों में अनबन हो गई की जीण ने कहा मेरा भाई पहले घड़ा मेरा उतारेगा ओर भाभी ने कहा पहले मेरा इस तरह दोनों ननद भाभी लडती हुई घर पहुंची परन्तु इस बात का पता हर्ष को नही था। इस तरह हर्ष ने पहले घड़ा सिर से अपनी पत्नी का उतारा जिससे बहन नाराज हो गई। वही अनबन दोनों भाई ओर बहन के प्रेम में जहर घोल दिया जिसके कारण बहन अपने भाई हर्ष से नाराज होकर इन पहाडियों की बीच आकर तपस्या करने लगी पीछे पीछे हर्षनाथ भी अपनी लाडली बहन को मनाने के लिए आए लेकिन जीण माता जीद्द करने लगी साथ जाने से मना कर दिया। हर्षनाथ का मन बहुत उदास हो गया और वे भी वहां से कुछ दूर जाकर वहां पर तपस्या करने लगे। दोनों भाई बहन के बीच हुई बातचीत का सुलभ वर्णन आज भी राजस्थान के लोक गीतों में मिलता है। भगवन हर्षनाथ का भव्य मन्दिर आज भी राजस्थान की अरावली पर्वतमाला में स्थित है।

एतिहासिक तथ्यों के अनुसार दिल्ली के बादशाह औरंगजेब ने एक बार हर्ष पर्वत पर आक्रमण किया और पुरे मंदिरों, गुफाओं, और अनेक भवनों को क्षत विक्षत कर दिया। शिव मंदिर तो ध्वस्त हुआ फ़िर वो माता के मदिर की और बढ़ा। कहते है तब माता ने भंवरा मधुमखियों (बड़ी मधुमख्खी) के झुंडों से उसकी पूरी सेना पर आक्रमण करवा दिया। मधुमखियों के दंशो से बेहाल पूरी सेना घोडे मैदान छोड़कर भाग गए।

तब औरंगजेब ने हारकर माता के चरणों में शीश नवाया व क्षमा याचना की। तब जाकर कहीं उसका पीछा छूता। माता की शक्ति को जानकर उसने वहां पे भंवरो की रानी के नाम से शुद्ध खालिस सोने की बनी मूर्ति भेंट की और सवामन तेल का दीपक अखंड ज्योति के रूप में मंदिर में स्थापित किया और आज शताब्दियों के बाद भी वो अखंड ज्योत प्रज्वलित हो रही है। आज भी माता सभी दुखी लोगो के दुःख हरती है ओर उनको सुख देती है।

कलयुग में शक्ति का अवतार माता जीण भवानी का भव्य धाम सीकर जिले (Sikar District) के रेवासा पहाडियों में स्थित है। ये जयपुर से लगभग 115 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। ये भव्य धाम चरों तरफ़ से ऊँची ऊँची पहाडियों से घिरा हुआ है। बरसात या सावन के महीने में इन पहाडो की छटा देखाने लायक होती है। राष्ट्रिये राजमार्ग 11 से ये लगभग 10 किलोमीटर की दुरी पर है। जहाँ रानोली से माता के दर्शन के लिए अच्छी सड़क बनाई गयी है। यानी की गौरियाँ (यहाँ से सीधी रोड आती है) या रानोली (यहाँ से कोछौर देकर आना पड़ता है) स्टैंड द्वारा यहाँ पहुंचा जा सकता है।



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