दीन सबन को लखत है -रहीम

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दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखे न कोय ।
जो ‘रहीम’ दीनहिं लखै, दीनबंधु सम होय ॥

अर्थ

गरीब की दृष्टि सब पर पड़ती है, पर गरीब को कोई नहीं देखता। जो गरीब को प्रेम से देखता है, उसकी मदद करता है, वह दीनबन्धु भगवान के समान हो जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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