गीता 6:37

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गीता अध्याय-6 श्लोक-37 / Gita Chapter-6 Verse-37

अयति: श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानस: ।
अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति ।।37।।



<balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> बोले-


हे <balloon link="कृष्ण" title="गीता कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤"> श्रीकृष्ण</balloon> ! जो योग में श्रद्धा रखने वाला है, किंतु संयमी नहीं है, इस कारण जिसका मन अन्तकाल में योग से विचलित हो गया है, ऐसा साधक योग की सिद्धि को अर्थात् भगवत्साक्षात्कार को न प्राप्त होकर किस गति को प्राप्त होता है ? ।।37।।

Arjuna said:


Krishna, what becomes of the soul who, though endowed with faith, has not been able to subdue his passion , and whose mind is therefore diverted from Yoga (at the time of death), and who thus fails to reach perfection in yoga (God-realization)? (37)


कृष्ण = हे कृष्ण ; योगात् = योग से ; चलितमानस: = यलायमान हो गया है मन जिसका ऐसा ; योगसंसिद्धिम् = योग की सिद्धि को अर्थात् भगवत् साक्षात्कारता को ; अयति: = शिथिल यत्नवाला ; श्रद्धया उपेत: = श्रद्धायुक्त पुरुष ; अप्राप्त = न प्राप्त होकर ; काम् = किस ; गतिम् = गति को ; गच्छति = प्राप्त होता है ;



अध्याय छ: श्लोक संख्या
Verses- Chapter-6

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अध्याय / Chapter:
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