पाराशर स्मृति

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 09:53, 21 March 2011 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==")
Jump to navigation Jump to search
  • 12 अध्यायों में विभक्त पाराशर-स्मृति के प्रणेता भगवान् वेदव्यास के पिता ऋषि पराशर हैं, जिन्होंने चारों युगों की धर्मव्यवस्था को समझकर सहजसाध्य रूप धर्म की मर्यादा निर्दिष्ट (निर्देशित) की है तथा कलियुग में दानधर्म को ही प्रमुख बताया है-

तप: परं कृतयुगे त्रेतायांज्ञानमुच्यते/द्वापरे यज्ञमित्यूचुदनिमेकं कलौयुगे। [1]

  • प्रथम अध्याय के 30 श्लोकों में कहा गया है कि सत युग में प्राण अस्थिगत, त्रेता युग में मांसगत, द्वापर युग में रुधिर में तथा कलि युग में अन्न में बसते हैं। कलियुग में आचार-विचार-परिपालन मुख्य धर्म है।
  • तृतीय अध्याय में शिशुओं, गर्भपति में अशौच एवं यज्ञोपवीत होने तक अशौच व्यवस्था वर्णित है।
  • चौथे अध्याय में गर्भपात को ब्रह्महत्या तुल्य मानते हुए इससे दूना पाप का भागी होना बताया गया है।
  • छठे अध्याय में किसी भी प्राणी के वध को पाप कहा गया है तथा इनके प्रायश्चित का विधान बताया गया है।
  • नौवें अध्याय में स्त्री, बालक, सेवक, रोगी तथा दु:खियों पर कोप न करने का निदेश है- 'स्त्री बालभृत्य गोवि प्रेष्वति कोपं विवर्जयेत'।[2]
  • 12वें अध्याय में किसी पापी के साथ शयन, संसर्ग, एक आसन पर बैठना तथा भोजन करना भी पाप कहा गया है, जिसके प्रायश्चित्त के लिए गोव्रत पालन का निदेश है- 'गवां चैवानुगमनं सर्वपापप्रणाशनम्'।[3]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1/23
  2. 9/62
  3. 12/12

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः