गृह्यसूत्र

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 14:19, 20 April 2010 by आदित्य चौधरी (talk | contribs) (Text replace - "डॉ0" to "डॉ.")
Jump to navigation Jump to search

गृह्यसूत्र / Grahsutra

गृह्यसूत्र तथा धर्मसूत्र दोनों ही स्मार्त्त हैं। कभी-कभी धर्मसूत्र अपने कल्प के गृह्यसूत्रों का अनुसरण भी करते हैं तथा गृह्यसूत्रों के ही विषय का प्रतिपादन करते हैं।[1] तथापि उनकी सत्ता एवं प्रामाणिकता स्वतंत्र है। इस समय चार ही धर्मसूत्र ऐसे उपलब्ध हैं जो अपने गृह्यसूत्रों का अनुसरण करते हैं। ये हैं – बौधायन, आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी तथा वैखानस गृह्यसूत्र। अन्य गृह्यसूत्रों का अनुसरण करने वाले धर्मसूत्र इस समय उपलब्ध नहीं हैं। यह भी माना जाता है कि अपने-अपने कल्प के गृह्यसूत्र तथा धर्मसूत्र का कर्त्ता एक ही व्यक्ति होता था। डॉ. रामगोपाल ने इस विषय में यह विचार प्रकट किया है- 'यह तो सिद्ध है कि एक ही कल्प के गृह्यसूत्र तथा धर्मसूत्र का कर्त्ता कए ही व्यक्ति था, किन्तु इस विषय में मतभेद पाया जाता है कि एक ही शाखा के सभी गृह्यसूत्रों के अनुरूप धर्मसूत्रों की भी रचना की गयी थी या केवल कुछ शाखाओं के कल्पों में ही यह विशेषता रखी गयी थी।' कुन्दल लाला शर्मा भी धर्म, श्रौत तथा गृह्यसूत्र इन तीनों का कर्त्ता एक ही व्यक्ति को मानते हुए लिखते हैं- 'यह सिद्धान्त स्थिर समझना चाहिए कि एक कल्प के श्रौत, गृह्य तथा धर्मसूत्रों के कर्त्ता एक ही व्यक्ति थे।[2]' यदि इनके कर्त्ता एक ही व्यक्ति थे तो ये ग्रन्थ समकालिक रहे होंगे। एक ही कर्त्ता ने कौन-सा सूत्रग्रन्थ पहले रचा तथा कौन-सा बाद में, इससे इनके पौर्वापर्य पर विशेष अन्तर नहीं पड़ता। डॉ. उमेश चन्द्र पाण्डेय ने धर्मसूत्रों के टीकाकारों के आधार पर ऐसा संकेत भी दिया है कि धर्मसूत्र, श्रौत तथा गृह्यसूत्रों से पूर्व विद्यमान थे, किन्तु डॉ. पाण्डेय ने इस तथ्य को अस्वीकार करते हुए प्रतिपादन किया है कि धर्मसूत्र श्रौतसूत्र तथा गृह्यसूत्रों के बाद की रचनाएँ हैं।<balloon title="गौतमधर्मसूत्र – भूमिका, पृष्ठ 6" style=color:blue>*</balloon>

टीका टिप्पणी

  1. रामगोपाल, इण्डिया आप वैदिक कल्पसूत्राज पृ0 7।
  2. वै.वा.का बृहद् इति. पृ. 492।

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः