इंद्रावती -नूर मुहम्मद

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 15:50, 29 July 2011 by मेघा (talk | contribs) ('*नूर मुहम्मद ने 1157 हिजरी (संवत् 1801) में 'इंद्रावती' नाम...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
  • नूर मुहम्मद ने 1157 हिजरी (संवत् 1801) में 'इंद्रावती' नामक एक सुंदर आख्यान काव्य लिखा जिसमें 'कालिंजर' के राजकुमार राजकुँवर और आगमपुर की राजकुमारी इंद्रावती की प्रेमकहानी है।
  • कवि ने प्रथानुसार उस समय के शासक मुहम्मदशाह की प्रशंसा इस प्रकार की है -

करौं मुहम्मदशाह बखानू । है सूरज देहली सुलतानू॥
धरमपंथ जग बीच चलावा । निबर न सबरे सों दुख पावा॥
बहुतै सलातीन जग केरे। आइ सहास बने हैं चेरे॥
सब काहू परदाया धारई । धरम सहित सुलतानी करई॥
कवि ने अपनी कहानी की भूमिका इस प्रकार बाँधी है॥
मन दृग सों इक राति मझारा । सूझि परा मोहिं सब संसारा॥
देखेउँ एक नीक फुलवारी । देखेउँ तहाँ पुरुष औ नारी॥
दोउ मुख सोभा बरनि न जाई । चंद सुरुज उतरे भुइँ आई॥
तपी एक देखेउतेहि ठाऊँ । पूछेउँ तासौं तिन्हकर नाऊँ॥
कहा अहै राजा औ रानी । इंद्रावति औ कुँवर गियानी॥
आगमपुर इंद्रावती, कुँवर कलिंजर रास॥
प्रेम हुँते दोउन्ह कहँ, दीन्हा अलख मिलाय॥

  • कवि ने जायसी के पहले के कवियों के अनुसार पाँच पाँच चौपाइयों के उपरांत दोहे का क्रम रखा है। इसी ग्रंथ को सूफी पद्धति का अंतिम ग्रंथ मानना चाहिए।
  • 'इंद्रावती' की रचना करने पर शायद नूर मुहम्मद को समय समय पर यह उपालंभ सुनने को मिलता था कि तुम मुसलमान होकर हिन्दी भाषा में रचना करने क्यों गए।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः