Revision as of 12:27, 19 August 2011 by रूबी(talk | contribs)('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Dinesh-Raghuvanshi...' के साथ नया पन्ना बनाया)
पहले मन में पीड़ा जागी
फिर भाव जगे मन-आँगन में
जब आँगन छोटा लगा उसे
कुछ ऐसे सँवर गई पीड़ा
क़ागज़ पर उतर गई पीड़ा…
जाने-पहचाने चेहरों ने
जब बिना दोष उजियारों का
रिश्ता अँधियारों से जोड़ा
जब क़समें खानेवालों ने
अपना बतलाने वालों ने
दिल क दरपन पल-पल तोड़ा
टूटे दिल को समझाने को
मुश्किल में साथ निभाने को
छोड़ के सारे ज़माने को
हर हद से गुज़र गई पीड़ा…
ये चाँद सितारे और अम्बर
पहले अपने-से लगे मगर
फिर धीरे-धीरे पहचाने
ये धन-वैभव, ये किर्ति-शिखर
पहले अपने- से लगे मगर
फिर ये भी निकले बेगाने
फिर मन का सूनापन हरने
और सारा ख़ालीपन भरने
ममतामयी आँचल को लेकर
अन्तस में ठहर गई पीड़ा
काग़ज़ पर उतर गई पीड़ा…
कुछ ख़्वाब पले जब आँखों में
बेगानों तक का प्यार मिला
यूँ लगा कि ये संसार मिला
जब आँसूं छ्लके आँखों से
अपनों तक से प्रतिकार मिला
चुप रहने का अधिकार मिला
फिर ख़ुद में इक विशवास मिला
कुछ होने का अहसास मिला
फिर एक खुला आकाश मिला
तारों-सी बिखर गई पीड़ा
काग़ज़ पर उतर गई पीड़ा…