बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-5 ब्राह्मण-1

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  • बृहदारण्यकोपनिषद के अध्याय पांचवाँ का यह प्रथम ब्राह्मण है।
  • इस ब्राह्मण में 'ब्रह्म' के सम्पूर्ण रूप का विवेचन किया गया है।
  • कहा है-'ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूणात्पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ ॐ3 खं ब्रह्म खं पुराणं वायुरं खमिति ह स्माह कौर व्यायणीपुत्रों वेदो यें ब्राह्मण विदुर्वेदैनेन यद्वेदितव्यम्॥1॥' अर्थात वह ब्रह्मण पूर्ण है, यह जगती पूर्ण है।
  • उस पूर्व ब्रह्म से ही यह पूर्ण विश्व प्रादुर्भूत हुआ है।
  • उस पूर्ण ब्रह्म में से इस पूर्ण जगत को निकाल लेने पर पूर्ण ब्रह्म ही शेष रहता है।
  • ॐ अक्षर से सम्बोधित अनन्त आकाश या परम व्योम ब्रह्म ही है।
  • यह आकाश सनातन परमात्म-रूप है। जिस आकाश में वायु विचरण करता है, वह आकाश ही ब्रह्म है।
  • ऐसा कौरव्यायणी पुत्र का कथन है।
  • यह ओंकार-स्वरूप ब्रह्म ही वेद है।
  • इस प्रकार सभी ज्ञानी ब्राह्मण जानते हैं; क्योंकि जो जानने योग्य है, वह सब इस ओंकार-रूप वेद से ही जाना जा सकता है।


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