सुन्दरी सवैया

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सुन्दरी सवैया छन्द 25 वर्णों का है। इसमें आठ सगणों और गुरु का योग होता है। इसका दूसरा नाम माधवी है। केशव ने इसे 'सुन्दरी' और दास ने 'माधवी' नाम दिया है। केशव[1], तुलसी [2], अनूप[3], दिनकर[4] ने इस छन्द का प्रयोग किया है।

  • "बरु मारिये मोहिं बिना पग धोये हौ नाथ न नाव चढ़ाइहौ जू।"[5]
  • "सब भूतल भूधर हाले अचानक आह भरत्थ के दुन्दुभि बाजे।"[6]
  • "पलकैं अरुनै, झलकै अरु नैन छुटी अलकै, छलकै लर मोती।"[7]
  • "बिनु पण्डित ग्रन्थ प्रकाश नहीं, बिन ग्रन्थ न पावत पण्डित भा है।" [8]
  • "मनु के यह पुत्र निराश न हों, नव धर्म-प्रदीप अवश्य जलेगा।"[9]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रामचन्द्रिका
  2. कवितावली
  3. कुणाल
  4. कुरुक्षेत्र
  5. कवितावली, 2 : 6
  6. रामचन्द्रिका, 10 : 14
  7. देव : शब्द रसायन, 10
  8. (भिखारीदास ग्र., पृष्ठ 246)
  9. दिनकर : कुरुक्षेत्र

धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 1 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 741-742।

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