गन्धर्व (यक्ष)

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गन्धर्व यक्ष का उल्लेख जैन तीर्थकर कुन्थनाथ के साथ जोड़कर किया गया है। जैन आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार राजहंस पर सवार, कृष्णवर्णी ये गन्धर्व यक्ष सत्रहवें जैन तीर्थकर कुन्थनाथ का संरक्षक और सेवक है।

  • गन्धर्व यक्ष की चार भुजाएँ बताई गई हैं।
  • इसका एक सीधा हाथ अभय वरदान मुद्रा में है, और दूसरे हाथ में पाश है।
  • एक बाएँ हाथ में नांरगी फल और दूसरे में अंकुश है।
  • हिन्दुओं के धर्मग्रन्थों में गन्धर्व देव तुल्य हैं, जो दैव-संगीतज्ञ माने गए हैं।
  • गन्धर्व कुमारियों-स्त्रियों को कोकिलकंठी मधुर आवाज़ का वरदान देते हैं।
  • इनका मूल निवास आकाश में स्थित गन्धर्व लोक बताया जाता है।
  • किन्नर, यक्ष, गरुणों के साथ गन्धर्व भी उपदेवता हैं, और यह उपासकों की मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 272 |

  1. (हेमचन्द्र : त्रिशस्ति। भट्टाचार्य, बी.सी. जैन मूर्तिकला।)

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