गांधार मूर्तिकला शैली

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गांधार मूर्तिकला शैली की सबसे उत्कृष्ट मूर्ति वह है- जिसमें बुद्ध को एक योगी के रूप में बैठे हुए दिखाया गया था। एक सन्यासी के वस्त्र पहने उनका मस्तक इस तरह से दिखायी दे रहा है। जैसे उसमें आध्यात्मिक शक्ति बिखर रही हो, बड़ी-बड़ी आँखे, ललाट पर तीसरा नेत्र और सिर पर उभार। ये तीनों संकेत यह दिखाते हैं कि वह सब सुन रहे हैं, सब देख रहे हैं और सब कुछ समझ रहे हैं।

बुद्ध के तीन रूप

यद्यपि बुद्ध के ये तीनों रूप विदेशी कला द्वारा भी प्रभावित हैं। बहरहाल शुद्ध रूप से भारतीय प्रतीत होती यह मूर्ति यह दर्शाती है कि कला घरेलू और विदेशी तत्वों का मिलाजुला रूप है। गांधार क्षेत्र की कला के जो महत्वपूर्ण तत्व हैं और उनकी जो शक्ति है- वह उत्तर पश्चिमी भारत की बौद्ध कला में देखी जा सकती है और यह प्राचीन देवताओं का प्रतिनिधित्व एवं उनके रूप दिखाती हैं। इसी तरह का प्रभाव खुदाई से निकले पत्थरों में भी देखा जा सकता है, यह पत्थर चाहे अपनी कलात्मक शैली या अपने दैवीय रूप को दिखाते हों लेकिन उनका रोमन वास्तुकला से साम्राज्यवादी समय से ही गहरा संबंध रहा है, मूर्ति की स्थिति, शरीर का आकार और उसका वास्तु ढांचा स्पष्टत: रोमन मॉडल पर ही आधारित है।

गांधार शैली

गांधार स्थापत्य कला की अनेक कला कृतियाँ बुद्ध के जीवन काल से जुड़ी हुई हैं अथवा बुद्ध की अन्य भावभंगिमाओं को लेकर बनायी गयी हैं। बुद्ध की मूर्तियों में अधिकांशत उन्हें हमेशा सन्यासी वस्त्रों में ही दिखायी गया है, जिनके बाल छोटे थे। बोधिसत्व अथवा बौद्ध सन्यासियों को शरीर के ऊपरी भाग में नि:वस्त्र दिखाया जाता रहा जो लुंगी, गमछा और आभूषण पहने रहते थे, उनके बाल लंबे दिखाये गये हैं। एशिया की सभी बौद्ध कलाओं में,[1] उक्त चीजें परिलक्षित हैं। भारतीय संदर्भ में गांधार की शैली एक अलग रंग लिये हुए है। गुप्त काल की बुद्ध मूर्तियों आध्यात्मिक छवि का अभाव है तथापि यह यह कहना न्यायोचित होगा कि वे मूर्तियाँ, सुन्दर, सुसज्जित एवं सजीवता लिये हुए हैं।

गांधार शैली के चरण

गांधार शैली के विकास के दो चरण हैं:

  1. पत्थर निर्मित मूर्तिकला का चरण
  2. महीन प्लास्टर निर्मित कला का चरण जो कि चौथी शताब्दी में भी अनवरत रहा


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बुद्ध जिन्होंने ज्ञान प्राप्त कर लिया, अथवा बोधिसत्व जो इस लक्ष्य की प्राप्ति के पथ पर थे।

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