गृद्धपिच्छ

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 08:28, 25 March 2010 by रेणु (talk | contribs) (1 अवतरण)
Jump to navigation Jump to search

आचार्य गृद्धपिच्छ / Acharya Graddhapichha

  • आचार्य वीरसेन और आचार्य विद्यानन्द ने इनका आचार्य गृद्धपिच्छ नाम से उल्लेख किया है।
  • दसवीं-11वीं शताब्दी के शिलालेखों तथा इस समय में अथवा उत्तरकाल में रचे गये साहित्य में इनके-
  1. उमास्वामी और
  2. उमास्वाति ये दो नाम भी उपलब्ध हैं।
  • इनका समय विक्रम की प्रथम शताब्दी है। ये सिद्धान्त, दर्शन और न्याय तीनों विषयों के प्रकाण्ड विद्वान थे। इनका रचा एकमात्र सूत्रग्रन्थ 'तत्त्वर्थसूत्र' है, जिस पर
  1. पूज्यपाद ने सर्वार्थसिद्धि,
  2. अकलंकदेव ने तत्त्वार्थवार्तिक एवं भाष्य,
  3. विद्यानन्द ने तत्त्वार्थश्लोक वार्तिक एवं भाष्य और
  4. श्रुतसागरसूरि ने तत्त्वार्थवृत्ति-ये चार विशाल टीकायें लिखी हैं।
  • श्वेताम्बर परम्परा में तत्त्वार्थभाष्य और सिद्धसेन गणी की तत्त्वार्थव्याख्या- ये दो व्याख्याएँ रची गयी हैं। इसमें सिद्धान्त, दर्शन और न्याय की विशद एवं संक्षेप में प्ररूपणा की गयी है<balloon title="तत्त्वार्थसूत्र में 'जैन न्यायशास्त्र के बीज' शीर्षक निबन्ध, जैनदर्शन और प्रमाणशास्त्र परिशीलन, पृ0 70, वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट प्रकाशन" style=color:blue>*</balloon>।
  • उत्तरवर्ती आचार्यों ने इसका बड़ा महत्त्व घोषित करते हुए लिखा है कि जो इस दस अध्यायों वाले तत्त्वार्थसूत्र का एक बार भी पाठ करता है उसे एक उपवास का फल प्राप्त होता है।<balloon title="दशाध्याये परिच्छिन्ने तत्त्वार्थे पठिते सति। फलं स्यादुपवासस्य भाषितं मुनिपुंगवै:॥" style=color:blue>*</balloon>

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः