संदेश रासक
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==शीर्षक उदाहरण 1 ==संदेश रासक
===शीर्षक उदाहरण 2 ===नाम अपभ्रंश में इसका नाम संनेह रासयं रइयं मिलता है। हिन्दी में यह संदेश रासक के नाम से जाना जाता है। इसके रचनाकार ने अहने नाम का उल्लेख “अद्दहमाण” के रूप में किया है और इससे अब्दुल रहमान का आश्रय लिया गया है। ====शीर्षक उदाहरण 3 ====रचनाकार का नाम इसके रचनाकार ने अहने नाम का उल्लेख “अद्दहमाण” के रूप में किया है और इससे अब्दुल रहमान का आश्रय लिया गया है
=====शीर्षक उदाहरण 4 =====रचना का रचनाकालकवि ने रचना के आरम्भ में कवि वंदना में “तिहुयण” (त्रिभुवन) का भी उल्लेख किया है तथा उनके लिए “ दिट्ठ” का प्रयोग किया है जिसका अर्थ होता है – देखा है। बाह्य साक्ष्यों के अनुसार त्रिभुवन का समय सन् 893- 943 के आसपास ठहरता है। (पउम चरिउ के सम्पादक डॉ. भयाणी के मतानुसार)। इस आधार पर इनका समय दसवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध मानना संगत है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- [प्रोफेसर महावीर सरन जैन - अपभ्रंश एवं आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के संक्रमण-काल की रचनाएँ (हिन्दी के विशेष संदर्भ में)- http://www.pravakta.com/apabhra%E1%B9%83sa-modern-indian-aryan-languages-transition-period-of-compositions]
बाहरी कड़ियाँ
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