राम-नाम जान्यो नहीं -रहीम

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राम-नाम जान्यो नहीं, जान्यो सदा उपाधि।
कहि ‘रहिम’ तिहि आपुनो, जनम गंवायो बाधि॥

अर्थ

राम-नाम का माहात्म्य तो मैंने जाना नहीं और जिसे जानने का जतन किया, वह सारा व्यर्थ था। राम का ध्यान तो किया नहीं और विषय-वासनाओं से सदा लिपटा रहा।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पशु नीरस खली को तो बड़े स्वाद से खाते हैं, पर गुड़ की डली जबरदस्ती बेमन से गले के नीचे उतारते हैं।

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