बिन्दु में सिन्धु समान -रहीम

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बिन्दु में सिन्धु समान, को अचरज कासों कहैं।
हेरनहार हिरान, ‘रहिमन’ आपुनि आपमें॥

अर्थ

अचरज की यह बात कौन तो कहे और किससे कहे: लो, एक बूँद में सारा ही सागर समा गया। जो खोजने चला था, वह अपने आप में खो गया।[1]


left|50px|link=रहिमन कीन्ही प्रीति -रहीम|पीछे जाएँ रहीम के दोहे right|50px|link=रहिमन बात अगम्य की -रहीम|आगे जाएँ

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. खोजनहारी आत्मा और खोजने की वस्तु परमात्मा। भ्रम का पर्दा उठते ही न खोजने वाला रहा और न वह, कि जिसे खोजा जाना था। दोनों एक हो गए। अचरज की बात कि आत्मा में परमात्मा समा गया। समा क्या गया, पहले से ही समाया हुआ था।

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