कागज को सो पूतरा -रहीम
कागज को सो पूतरा, सहजहिं में घुल जाय।
‘रहिमन’ यह अचरज लखो, सोऊ खैंचत जाय॥
- अर्थ
शरीर यह ऐसा हैं, जैसे काग़ज़ का पुतला, जो देखते-देखते घुल जाता है। पर यह अचरज तो देखो कि यह साँस लेता है, और दिन-रात लेता रहता हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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