रहिमन जिव्हा बावरी -रहीम
‘रहिमन’ जिव्हा बावरी, कहिगी सरग पताल।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल॥
- अर्थ
क्या किया जाय इस पगली जीभ का, जो न जाने क्या-क्या उल्टी-सीधी बातें स्वर्ग और पाताल तक की बक जाती है। खुद तो कहकर मुहँ के अन्दर हो जाती है, और बेचारे सिर को जूतियाँ खानी पड़ती हैं।
left|50px|link=रहिमन अब वे बिरछ कह -रहीम|पीछे जाएँ | रहीम के दोहे | right|50px|link=रहिमन तब लगि ठहरिए -रहीम|आगे जाएँ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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