रम्या और विनीथा

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thumb|250px|रम्या और विनीथा (अंतिम संस्कार) रम्या राजन और पी.के. विनीथा केरल के कोट्टायम ज़िले की रहने वाली दो नर्स, जिनकी 9 दिसंबर 2011 शुक्रवार को कोलकाता के आमरी अस्पताल में हुए भीषण अग्निकांड में फंसे लोगों को बचाने में मृत्यु हो गयी। इन दोनों ने मिलकर आठ मरीज़ों की जान बचाई, लेकिन नौवें मरीज़ को बचाते समय धुएं से दम घुटने और अत्यधिक गर्मी की वजह से इनकी मौत हो गई।

समाचार

9 दिसंबर, 2011 शुक्रवार

ख़ुद मौत को गले लगाकर रम्या और विनीथा ने बचाई 8 जानें

आग की लपटों और ज़हरीले धुएं से घिरे कोलकाता के एएमआरआई (आमरी) अस्पताल में 'रम्या राजन' और 'पी.के. विनीथा' ने मानवता और बहादुरी की अतुलनीय मिसाल पेश की। अपनी जान की परवाह न करते हुए दोनों ने आठ मरीज़ों को सुरक्षित निकाल लिया, पर एक अन्य मरीज़ को बचाने के प्रयास में उनकी मौत हो गई। अस्पताल की डिप्टी नर्सिग अधीक्षक सुमिनी ने बताया कि जिस समय हादसा हुआ उस समय रम्या और विनीथा (दोनों की उम्र लगभग 24 वर्ष) महिला वार्ड में ड्यूटी पर थीं। वार्ड में दमघोंटू ज़हरीले धुएं के घुसने पर उन्होंने जरा भी समय गंवाए बिना वहाँ भर्ती आठ मरीज़ों को एक-एक कर सुरक्षित निकाल लिया, पर नौवें मरीज़ को बचाने के प्रयास में धुएं से दम घुटने और अत्यधिक गर्मी की वजह से उनकी मौत हो गई।

समाचार विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें

रम्या राजन

thumb|रम्या राजन रम्या ने कोलकाता में हुए हादसे की रात मरीज़ों को बचाने से पहले केरल के कोट्टायम में स्थित अपने घर पर माँ से फोन पर बात की थी, जो उनके बीच हुई आखिरी बातचीत थी। बातचीत में उसने माँ को बताया था कि अस्पताल में तेज गंध वाला धुआं भर गया है और सांस लेने में परेशानी हो रही है। इससे पहले कि बात पूरी होती फोन कट गया। बाद में एक अन्य नर्स ने रम्या के घर फोन कर जानकारी दी कि रम्या सहित दो मलयाली नर्सो की अग्निकांड में मौत हो गई।

पी.के. विनीथा

thumb|विनीथा विनीथा भी कोट्टायम की रहने वाली थी। बेहद ग़रीब परिवार की विनीथा ने चंडीगढ़ के एक अस्पताल से इस्तीफा देकर दो माह पहले ही एएमआरआई (आमरी) अस्पताल में नौकरी शुरू की थी।

रम्या और विनीथा की वंदना में

दिव्य दिवंगत नर्स रम्या और विनीथा!
वहां हर कोई तुम्हारा ऋणी था।
ऋणी है और ऋणी रहेगा,
इंसानियत का हर ज़र्रा यही कहेगा—
 
दृश्य जहां था हाहाकारी,
युवा चेतना वहां न हारी।
चौबिस की थीं दोनों नर्सें,
पीड़ा पर करुणा बन बरसें।
आग धुंए की आपाधापी,
इन्हें न कोई चिंता व्यापी।
कुटिल काल क्रीड़ा कराल थी,
हिम्मत इनकी बेमिसाल थी।
तड़प रहे थे बेबस रोगी,
निश्चित ही था दुर्गति होगी।
दमघोंटू था धुआं भयानक,
तन को झुलसाता था पावक।
मृत्यु अचानक खुल कर नाची,
यम ने अपनी पोथी बांची।
गूंज रही थीं कलप-कराहें,
सांसों की जो भिक्षा चाहें।
जीवन बनीं विनीथा-रम्या,
धुंए-धांस में सांस सुरम्या।
जिनको थे जीवन के लाले,
एक एक कर आठ निकाले।
ये दोनों कोमल कन्याएं,
उठा-उठा कर बाहर लाएं।
बाहर से फिर जाएं अंदर,
हिम्मत का बन एक समंदर।
नवां मरीज़ अपाहिज भारी,
आग हो गई प्रलयंकारी।
चारों ओर धुआं ज़हरीला,
ख़त्म कर गया इनकी लीला।
परहित अपने प्राण गंवाए,
सबने अपने शीश झुकाए।
 
जिन्होंने आहुति दी निष्काम,
रम्या और विनीथा को प्रणाम!

- हिन्दी के वरिष्ठ कवि अशोक चक्रधर


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