अभिधर्मकोश

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अभिधर्मकोश आचार्य असंग के छोटे भाई आचार्य वसुबंधु ने अपने जीवन के प्रथम भाग में सर्वास्तिवाद सिद्धांत के अनुसार कारिकाबद्ध अभिधर्मकोश ग्रंथ की रचना की। यह इतना प्रसिद्ध और लोकप्रिय हुआ कि कवि बाण ने लिखा है कि तोते-मैने भी अभिधर्मकोश के श्लोकों का उच्चारण करते थे। अपने सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए आचार्य ने यथास्थान अन्य दर्शनों की समीक्षा भी की है। ग्रंथ पर आचार्य ने स्वयं एक विस्तृत भाष्य की भी रचना की, जिसपर कई टीकाएँ लिखी गई। प्रसिद्ध यात्री विद्वान्‌ हुएन्सांग ने चीनी भाषा में इसका अनुवाद किया था जो आज भी प्राप्त है।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 175 |

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