मंगला चरण मोहंती

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thumb|250px|मंगला चरण मोहंती मंगला चरण मोहंती (अंग्रेज़ी: Mangla Charan Mohanty, जन्म- ?; मृत्यु- 4 सितम्बर, 2020) छऊ नृत्य के प्रसिद्ध नर्तक कलाकार थे। टाटा कंपनी की सेवा में रहते हुए छऊ गुरु मंगला चरण मोहंती ने ना केवल देश-विदेश में छऊ का प्रदर्शन किया, बल्कि इन्हीं उपलब्धियों की वजह से भारत सरकार ने उन्हें 2009 में पद्म श्री से सम्मानित किया था। अंत के वर्षों तक वह बिष्टुपुर स्थित मिलानी में छऊ नृत्य का प्रशिक्षण दे रहे थे।

  • मंगला चरण महांती की गिनती छऊ के विशेषज्ञों में होती थी। बताया जाता है कि वह महज 12 वर्ष की आयु में छऊ सीखने लगे और देखते ही देखते छऊ में कुछ वर्षो में पारंगत हो गये।
  • उस दौर के कलाकार बताते हैं कि पद्म श्री मंगला चरण जी के नृत्य को देखने छऊ अखाड़े में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी। मंगला चरण मोहंती ने छऊ के जरिये देश-विदेश के अन्य भाषा-संस्कृति वाले लोगों को भी अपनी और आकर्षित किया था।
  • राजकीय छऊ कला केंद्र के निदेशक तपन पट्टनायक ने उनके निधन को कला जगत के लिए अपूरणीय क्षति बताते हुए कहा था कि वे जमशेदपुर के विभिन्न जगहों में छऊ नृत्य का प्रदर्शन करते थे। एक कार्यक्रम में टाटा स्टील के अधिकारी भी छऊ नृत्य देखने पहुंचे थे। मोहंती जी के छऊ नृत्य से मोहित होकर अधिकारियों ने उन्हें टाटा स्टील में नोकरी का प्रस्ताव दिया था, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।
  • कोल्हान प्रमंडल के सरायकेला-खरसावां जिले की पहचान छऊ नृत्य के लिए है। छऊ नृत्य की शैली खास है। छऊ के कारण सरायकेला की ख्याति पूरी दुनिया में है और अब तक छह कलाकारों को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री मिल चुका है। यहां छऊ नृत्य सीखने दूसरे देशों से भी लोग आते हैं और यहां के कलाकारों को दूसरे देशों से प्रदर्शन का बुलावा आता ही रहता है। अब तक पद्म श्री पाने वालों में सुधेंद्र नारायण सिंह देव (1991), केदार नाथ साहू (2005), श्यामा चरण पति (2006), मंगला चरण मोहंती (2009), मकरध्वज दारोघा (2011), गोपाल प्रसाद दुबे (2012) व शशधर आचार्य (2020) शामिल हैं।
  • मंगला चरण मोहंती, सुधेंद्र नरायण सिंह देव, केदार नाथ साहु, मकरध्वज दारोघा जैसे कलाकारों के समकालीन थे। वे देश स्तर पर ही नही अपितु सात समंदर पार कई देशों में छऊ की सतरंगी छटा बिखेर चुके थे।
  • मंगला चरण मोहंती ने छऊ कला के लिए पूरा जीवन सर्मपित कर दिया और द्वारा छऊ के विकास में किये गये प्रयास को कभी भुलाया नही जा सकता है. जीवन के अंतिम क्षण तक छऊ नृत्य के लिये कार्य करते रहे. छऊ के विकास एवं इसके संरक्षण को लेकर भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया था.


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