अप्रस्तुत

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अप्रस्तुत (विशेषण) [न. त.]

1. जो समय या विषय है। उपयुक्त न हो, जो प्रसंगानुकूल न हो, असंगत
2. बेहूदा, मूर्खतापूर्ण
3. आकस्मिक, असंबद्ध


सम.-प्रशंसा (स्त्रीलिंग) एक अलंकार जिसमें विषय से भिन्न अर्थात् अप्रस्तुत का वर्णन करने में प्रस्तुत अर्थात् विषय का संकेत हो जाता है-अप्रस्तुत प्रशंसा या सैव प्रस्तुताश्रया -काव्य. 10, इसके 5 भेद हैं:-कार्य निमित्ते सामान्ये विशेषे प्रस्तुते सति, तदन्यस्य वचस्तुल्ये तुल्यस्येति च पंचधा-अर्थात् जबकि प्रस्तुत विषय पर

(क) कार्य के रूप में दृष्टिपात किया जाए-जिसकी सूचना कारण बतलाकर दी जाती है।
(ख) जब कार्य को बतलाकर कारण पर दृष्टिपात किया जाए।
(ग) जब कोई विशेष निदर्शन देकर सामान्य बात पर दृष्टि डाली जाए।
(घ) जब किसी सामान्य बात का कथन करके विशेष निदर्शन पर दृष्टिपात किया जाए, अथवा
(ङ) जब कि समान बात का कथन करके समान बात पर दृष्टिपात किया जाए, उदा. के लिए का. 10 और सा. द. 706[1]


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 74 |

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