अब्रह्मण्य (विशेषण) [न. त. नञ्+ ब्रह्मन्+यत्]
- 1. जो ब्राह्मण के लिए उपयुक्त न हो
- 2. ब्राह्मणों के लिए शत्रुवत्,-ण्यम् (नपुं.) अब्राह्मणोचित कार्य, या जो ब्राह्मण के लिए योग्य न हो। नाटकों में प्रायः यह शब्द दुहाई देने के अर्थ में प्रयुक्त होता है-अर्थात् 'रक्षा करो' 'सहायता करो' 'एक अत्यन्त भीषण और जघन्य कर्म हो गया है'।[1]
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 76 |
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