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इस देश के घर-घर और मंदिरों में जिसके शब्द बरसों से गूंज रहे हैं, दुनिया के किसी भी कोने में बसे किसी भी सनातनी हिंदू परिवार में ऐसा व्यक्ति खोजना मुश्किल है जिसके ह्रदय-पटल पर बचपन के संस्कारों में उसके लिखे शब्दों की छाप न पड़ी हो। उनके शब्द उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत के हर घर और मंदिर मे पूरी श्रध्दा और भक्ति के साथ गाए जाते हैं। बच्चे से लेकर युवाओं को और कुछ याद रहे या न रहे इसके बोल इतने सहज, सरल और भावपूर्ण है कि एक दो बार सुनने मात्र से इसकी हर एक पंक्ति दिल और दिमाग में रच-बस जाती है। हम बात कर रहे हैं देश और दुनियाभर के करोड़ों हिन्दुओं के रग-रग में बसी '''ओम जय जगदीश की आरती की'''। हजारों साल पूर्व हुए हमारे ज्ञात-अज्ञात ऋषियों ने परमात्मा की प्रार्थना के लिए जो भी श्लोक और भक्ति गीत रचे, ओम जय जगदीश की आरती की भक्ति रस धारा ने उन सभी को अपने अंदर समाहित सा कर लिया है। यह एक आरती संस्कृत के हजारों श्लोकों, स्तोत्रों और मंत्रों का निचोड़ है।  
 
इस देश के घर-घर और मंदिरों में जिसके शब्द बरसों से गूंज रहे हैं, दुनिया के किसी भी कोने में बसे किसी भी सनातनी हिंदू परिवार में ऐसा व्यक्ति खोजना मुश्किल है जिसके ह्रदय-पटल पर बचपन के संस्कारों में उसके लिखे शब्दों की छाप न पड़ी हो। उनके शब्द उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत के हर घर और मंदिर मे पूरी श्रध्दा और भक्ति के साथ गाए जाते हैं। बच्चे से लेकर युवाओं को और कुछ याद रहे या न रहे इसके बोल इतने सहज, सरल और भावपूर्ण है कि एक दो बार सुनने मात्र से इसकी हर एक पंक्ति दिल और दिमाग में रच-बस जाती है। हम बात कर रहे हैं देश और दुनियाभर के करोड़ों हिन्दुओं के रग-रग में बसी '''ओम जय जगदीश की आरती की'''। हजारों साल पूर्व हुए हमारे ज्ञात-अज्ञात ऋषियों ने परमात्मा की प्रार्थना के लिए जो भी श्लोक और भक्ति गीत रचे, ओम जय जगदीश की आरती की भक्ति रस धारा ने उन सभी को अपने अंदर समाहित सा कर लिया है। यह एक आरती संस्कृत के हजारों श्लोकों, स्तोत्रों और मंत्रों का निचोड़ है।  
  
ओम जय जगदीश की आरती जैसे भावपूर्ण गीत के रचयिता थे पंडित श्रद्धाराम शर्मा (प. श्रद्धाराम फिल्लौरी)। प. श्रध्दाराम शर्मा का जन्म 30 सितम्बर 1837 में जालंधर (पंजाब) के एक गाँव फिल्लौर (लुधियाना के पास) में हुआ था। उनके पिता जयदयालु खुद एक अच्छे ज्योतिषी थे। उन्होंने अपने बेटे का भविष्य पढ़ लिया था और भविष्यवाणी की थी कि यह एक अद्भुत बालक होगा। बालक श्रध्दाराम को बचपन से ही धार्मिक संस्कार तो विरासत में ही मिले थे। श्रद्धाराम जी ने सन् 1844 में अर्थात् बचपन में मात्र सात वर्ष की उम्र में ही गुरुमुखी भाषा सीख लिया था। दस साल की उम्र में संस्कृत, हिन्दी, पर्शियन (पारसी), ज्योतिष, और संस्कृत की पढाई शुरु की और कुछ ही वर्षो में वे इन सभी विषयों के निष्णात हो गए।  
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करीब डेढ़ सौ वर्ष में मंत्र और शास्त्र की तरह लोकप्रिय हो गई ओम जय जगदीश की आरती जैसे भावपूर्ण गीत के रचयिता थे पंडित श्रद्धाराम शर्मा (प. श्रद्धाराम फिल्लौरी)। प. श्रध्दाराम शर्मा का जन्म 30 सितम्बर 1837 में पंजाब (जालंधर) के लुधियाना के पास एक गाँव फिल्लौर (फुल्लौर) में हुआ था। उनके पिता जयदयालु खुद एक अच्छे ज्योतिषी और धार्मिक प्रवृत्ति के थे। ऐसे में बालक श्रद्धाराम को बचपन से ही धार्मिक संस्कार विरासत में मिले थे। उन्होंने अपने बेटे का भविष्य पढ़ लिया था और भविष्यवाणी की थी कि यह एक अद्भुत बालक होगा। बालक श्रध्दाराम को बचपन से ही धार्मिक संस्कार तो विरासत में ही मिले थे। श्रद्धाराम जी ने सन् 1844 में अर्थात् बचपन में मात्र सात वर्ष की उम्र में ही गुरुमुखी भाषा सीख लिया था। दस साल की उम्र में संस्कृत, हिन्दी, पर्शियन (पारसी), ज्योतिष, और संस्कृत की पढाई शुरु की और कुछ ही वर्षो में वे इन सभी विषयों के निष्णात हो गए।  
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पंडित श्रद्धाराम शर्मा हिंदी के ही नहीं बल्कि पंजाबी के भी श्रेष्ठ साहित्यकारों में थे, लेकिन उनका मानना था कि हिंदी के माध्यम से इस देश के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचाई जा सकती है। उन्होंने अपने साहित्य और व्याख्यानों से सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों के खिलाफ जबर्दस्त माहौल बनाया।
  
 
पं. श्रध्दाराम ने सन् 1866 में पंजाबी (गुरूमुखी) में प्रकाशन 'सिखों दे राज दी विथिया' और 'पंजाबी बातचीत' जैसी किताबें लिखकर मानो क्रांति ही कर दी। अपनी पहली ही किताब 'सिखों दे राज दी विथिया' से वे पंजाबी साहित्य के पितृपुरुष के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। बाद में इस रचना का रोमन में अनुवाद भी हुआ। इस पुस्तक मे सिख धर्म की स्थापना और इसकी नीतियों के बारे में बहुत सारगर्भित रूप से बताया गया था। पुस्तक में तीन अध्याय है। इसके अंतिम अध्याय में पंजाब की संकृति, लोक परंपराओं, लोक संगीत आदि के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई थी। अंग्रेज सरकार ने तब होने वाली आईसीएस (जिसका भारतीय नाम अब आईएएस हो गया है) परीक्षा के कोर्स में इस पुस्तक को शामिल किया था।  
 
पं. श्रध्दाराम ने सन् 1866 में पंजाबी (गुरूमुखी) में प्रकाशन 'सिखों दे राज दी विथिया' और 'पंजाबी बातचीत' जैसी किताबें लिखकर मानो क्रांति ही कर दी। अपनी पहली ही किताब 'सिखों दे राज दी विथिया' से वे पंजाबी साहित्य के पितृपुरुष के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। बाद में इस रचना का रोमन में अनुवाद भी हुआ। इस पुस्तक मे सिख धर्म की स्थापना और इसकी नीतियों के बारे में बहुत सारगर्भित रूप से बताया गया था। पुस्तक में तीन अध्याय है। इसके अंतिम अध्याय में पंजाब की संकृति, लोक परंपराओं, लोक संगीत आदि के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई थी। अंग्रेज सरकार ने तब होने वाली आईसीएस (जिसका भारतीय नाम अब आईएएस हो गया है) परीक्षा के कोर्स में इस पुस्तक को शामिल किया था।  
  
श्रद्धाराम फिल्लौरी जी का गुरुमुखी और हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 1870 में उन्होंने ओम जय जगदीश की आरती की रचना की। प. श्रध्दाराम की विद्वता, भारतीय धार्मिक विषयों पर उनकी वैज्ञानिक दृष्टि के लोग कायल हो गए थे। जगह-जगह पर उनको धार्मिक विषयों पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया जाता था और तब हजारों की संख्या में लोग उनको सुनने आते थे। वे लोगों के बीच जब भी जाते अपनी लिखी ओम जय जगदीश की आरती गाकर सुनाते। उनकी आरती सुनकर तो मानो लोग बेसुध से हो जाते थे। आरती के बोल लोगों की जुबान पर ऐसे चढ़े कि आज कई पीढियाँ गुजर जाने के बाद भी उनके शब्दों का जादू कायम है।  
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श्रद्धाराम फिल्लौरी जी का गुरुमुखी और हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 32 वर्ष की उम्र में पंडित श्रद्धाराम शर्मा ने 1870 में उन्होंने ''ओम जय जगदीश'' की आरती की रचना की। प. श्रध्दाराम की विद्वता और भारतीय धार्मिक विषयों पर उनकी वैज्ञानिक दृष्टि के लोग कायल हो गए थे। जगह-जगह पर उनको धार्मिक विषयों पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया जाता था और तब हजारों की संख्या में लोग उनको सुनने आते थे। वे लोगों के बीच जब भी जाते अपनी लिखी ओम जय जगदीश की आरती गाकर सुनाते। उनकी आरती सुनकर तो मानो लोग बेसुध से हो जाते थे। आरती के बोल लोगों की जुबान पर ऐसे चढ़े कि आज कई पीढियाँ गुजर जाने के बाद भी उनके शब्दों का जादू कायम है।  
  
उन्होंने धार्मिक कथाओं और आख्यानों का उध्दरण देते हुए अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ जनजागरण का ऐसा वातावरण तैयार कर दिया कि अंग्रेजी सरकार की नींद उड़ गई। श्री श्रद्धाराम जी को देश के स्वतन्त्रता आन्दोलनों में भाग लेने तथा अपने भाषणों में महाभारत के उद्धरणों का उल्लेख करते हुए ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने का संदेश देते थे और लोगों में क्रांतिकारी विचार पैदा करते थे। 1865 में ब्रिटिश सरकार ने उनको उनके गाँव फुल्लौरी से निष्कासित कर दिया और आसपास के गाँवों तक में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई। जबकि उनकी लिखी किताबें स्कूलों में पढ़ाई जाती रही।
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उन्होंने धार्मिक कथाओं और आख्यानों का उध्दरण देते हुए अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ जनजागरण का ऐसा वातावरण तैयार कर दिया कि अंग्रेजी सरकार की नींद उड़ गई। श्री श्रद्धाराम जी को देश के स्वतन्त्रता आन्दोलनों में भाग लेने तथा अपने भाषणों में महाभारत के उद्धरणों का उल्लेख करते हुए ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने का संदेश देते थे और लोगों में क्रांतिकारी विचार पैदा करते थे। पंडित श्रद्धाराम शर्मा की गतिविधियों से तंग आकर 1865 में ब्रिटिश सरकार ने उनको उनके गाँव फुल्लौरी से निष्कासित कर दिया और आसपास के गाँवों तक में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई। जबकि उनकी लिखी किताबें स्कूलों में पढ़ाई जाती रही।
  
 
पं. श्रध्दाराम खुद ज्योतिष के अच्छे ज्ञाता थे और अमृतसर से लेकर लाहौर तक उनके चाहने वाले थे इसलिए इस निष्कासन का उन पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि उनकी लोकप्रियता और बढ गई। लोग उनकी बातें सुनने को और उनसे मिलने को उत्सुक रहने लगे। इसी दौरान उन्होंने हिन्दी में ज्योतिष पर कई किताबें भी लिखी। लेकिन एक इसाई पादरी फादर न्यूटन जो पं. श्रध्दाराम के क्रांतिकारी विचारों से बेहद प्रभावित थे, के हस्तक्षेप पर अंग्रेज सरकार को थोड़े ही दिनों में उनके निष्कासन का आदेश वापस लेना पड़ा। पं. श्रध्दाराम ने पादरी के कहने पर सन् 1868 में बाईबिल के कुछ अंशों का गुरुमुखी में अनुवाद किया था। पं. श्रध्दाराम ने अपने व्याख्यानों से लोगों में अंग्रेज सरकार के खिलाफ क्रांति की मशाल ही नहीं जलाई बल्कि साक्षरता के लिए भी ज़बर्दस्त काम किया।   
 
पं. श्रध्दाराम खुद ज्योतिष के अच्छे ज्ञाता थे और अमृतसर से लेकर लाहौर तक उनके चाहने वाले थे इसलिए इस निष्कासन का उन पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि उनकी लोकप्रियता और बढ गई। लोग उनकी बातें सुनने को और उनसे मिलने को उत्सुक रहने लगे। इसी दौरान उन्होंने हिन्दी में ज्योतिष पर कई किताबें भी लिखी। लेकिन एक इसाई पादरी फादर न्यूटन जो पं. श्रध्दाराम के क्रांतिकारी विचारों से बेहद प्रभावित थे, के हस्तक्षेप पर अंग्रेज सरकार को थोड़े ही दिनों में उनके निष्कासन का आदेश वापस लेना पड़ा। पं. श्रध्दाराम ने पादरी के कहने पर सन् 1868 में बाईबिल के कुछ अंशों का गुरुमुखी में अनुवाद किया था। पं. श्रध्दाराम ने अपने व्याख्यानों से लोगों में अंग्रेज सरकार के खिलाफ क्रांति की मशाल ही नहीं जलाई बल्कि साक्षरता के लिए भी ज़बर्दस्त काम किया।   
  
आज जिस पंजाब में सबसे ज्यादा कन्याओं की भ्रूण हत्याएं होती है इसका एहसास उन्होंने बहुत पहले कर लिया था। श्री श्रद्धा राम को भारत के प्रथम उपन्यासकार के रूप में भी जाना जाता है। 1877 में भाग्यवती नामक एक उपन्यास प्रकाशित हुआ (जिसे हिन्दी का पहला उपन्यास माना जाता है), इस उपन्यास की पहली समीक्षा अप्रैल 1887 में हिन्दी की मासिक पत्रिका प्रदीप में प्रकाशित हुई थी। उपन्यास 'भाग्यवती' जिसको निर्मल प्रकाशन ने सन 1888 में प्रकाशित किया था। इसे पंजाब सहित देश के कई राज्यो के स्कूलों में कई सालों तक पढाया जाता रहा। इस उपन्यास में उन्होंने काशी के एक पंडित उमादत्त की बेटी भगवती के किरदार के माध्यम से बाल विवाह पर ज़बर्दस्त चोट की। इस उपन्यास में उन्होंने भारतीय स्त्री की दशा और उसके अधिकारों को लेकर क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत किए।  
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आज जिस पंजाब में सबसे ज्यादा कन्याओं की भ्रूण हत्याएं होती है इसका एहसास उन्होंने बहुत पहले कर लिया था और इस विषय पर उन्होंने ‘भाग्यवती‘ उपन्यास लिखकर समाज को चेता दिया था। श्री श्रद्धाराम को भारत के प्रथम उपन्यासकार के रूप में भी जाना जाता है। 1877 में भाग्यवती नामक एक उपन्यास प्रकाशित हुआ (जिसे हिन्दी का पहला उपन्यास माना जाता है), इस उपन्यास की पहली समीक्षा अप्रैल 1887 में हिन्दी की मासिक पत्रिका प्रदीप में प्रकाशित हुई थी। उपन्यास 'भाग्यवती' जिसको निर्मल प्रकाशन ने सन 1888 में प्रकाशित किया था। इसे पंजाब सहित देश के कई राज्यो के स्कूलों में कई सालों तक पढाया जाता रहा। इस उपन्यास में उन्होंने काशी के एक पंडित उमादत्त की बेटी भगवती के किरदार के माध्यम से बाल विवाह पर ज़बर्दस्त चोट की। इस उपन्यास में उन्होंने भारतीय स्त्री की दशा और उसके अधिकारों को लेकर क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत किए।  
  
 
पं. श्रध्दाराम के जीवन और उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकों पर गुरू नानक विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के डीन और विभागाध्य्क्ष श्री डॉ. हरमिंदर सिंह ने ज़बर्दस्त शोध कर तीन संस्करणों में श्रध्दाराम ग्रंथावली का प्रकाशन भी किया है। उनका मानना है कि पं. श्रध्दाराम का यह उपन्यास हिन्दी साहित्य का पहला उपन्यास है। लेकिन यह मात्र हिन्दी का ही पहला उपन्यास नहीं था बल्कि कई मायनों में यह पहला था। उनके उपन्यास की नायिका भाग्यवती पहली बेटी पैदा होने पर समाज के लोगों द्वार मजाक उडा़ए जाने पर अपने पति को कहती है कि किसी लड़के और लड़की में कोई फर्क नहीं है। उन्होंने इस उपन्यास के जरिए बाल विवाह जैसी कुप्रथा पर ज़बर्दस्त चोट की। उन्होंने तब लड़कियों को पढाने की वकालात की जब लड़कियों को घर से बाहर तक नहीं निकलने दिया जाता था, परंपराओं, कुप्रथाओं और रुढियों पर चोट करते रहने के बावजूद वे लोगों के बीच लोकप्रिय बने रहे। जबकि वह एक ऐसा दौर था जब कोई व्यक्ति अंधविश्वासों और धार्मिक रुढियों के खिलाफ कुछ बोलता था तो पूरा समाज उसके खिलाफ हो जाता था। निश्चय ही उनके अंदर अपनी बात को कहने का साहस और उसे लोगों तक पहुँचाने की जबर्दस्त क्षमता थी।
 
पं. श्रध्दाराम के जीवन और उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकों पर गुरू नानक विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के डीन और विभागाध्य्क्ष श्री डॉ. हरमिंदर सिंह ने ज़बर्दस्त शोध कर तीन संस्करणों में श्रध्दाराम ग्रंथावली का प्रकाशन भी किया है। उनका मानना है कि पं. श्रध्दाराम का यह उपन्यास हिन्दी साहित्य का पहला उपन्यास है। लेकिन यह मात्र हिन्दी का ही पहला उपन्यास नहीं था बल्कि कई मायनों में यह पहला था। उनके उपन्यास की नायिका भाग्यवती पहली बेटी पैदा होने पर समाज के लोगों द्वार मजाक उडा़ए जाने पर अपने पति को कहती है कि किसी लड़के और लड़की में कोई फर्क नहीं है। उन्होंने इस उपन्यास के जरिए बाल विवाह जैसी कुप्रथा पर ज़बर्दस्त चोट की। उन्होंने तब लड़कियों को पढाने की वकालात की जब लड़कियों को घर से बाहर तक नहीं निकलने दिया जाता था, परंपराओं, कुप्रथाओं और रुढियों पर चोट करते रहने के बावजूद वे लोगों के बीच लोकप्रिय बने रहे। जबकि वह एक ऐसा दौर था जब कोई व्यक्ति अंधविश्वासों और धार्मिक रुढियों के खिलाफ कुछ बोलता था तो पूरा समाज उसके खिलाफ हो जाता था। निश्चय ही उनके अंदर अपनी बात को कहने का साहस और उसे लोगों तक पहुँचाने की जबर्दस्त क्षमता थी।
  
 
हिन्दी के जाने माने लेखक और साहित्यकार पं. रामचंद्र शुक्ल ने पं. श्रध्दाराम शर्मा और भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिन्दी के पहले दो लेखकों में माना है। पं. श्रध्दाराम शर्मा हिन्दी के ही नहीं बल्कि पंजाबी के भी श्रेष्ठ साहित्यकारों में थे, लेकिन उनका मानना था कि हिन्दी के माध्यम इस देश के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुँचाई जा सकती है। श्री श्रद्धाराम फिल्लौरी का स्वर्गवास मात्र 44 वर्ष की अल्पायु में 24 जून 1881 को लाहौर में हुआ।
 
हिन्दी के जाने माने लेखक और साहित्यकार पं. रामचंद्र शुक्ल ने पं. श्रध्दाराम शर्मा और भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिन्दी के पहले दो लेखकों में माना है। पं. श्रध्दाराम शर्मा हिन्दी के ही नहीं बल्कि पंजाबी के भी श्रेष्ठ साहित्यकारों में थे, लेकिन उनका मानना था कि हिन्दी के माध्यम इस देश के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुँचाई जा सकती है। श्री श्रद्धाराम फिल्लौरी का स्वर्गवास मात्र 44 वर्ष की अल्पायु में 24 जून 1881 को लाहौर में हुआ।
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Revision as of 16:22, 20 December 2011

chitr:Icon-edit.gif is lekh ka punarikshan evan sampadan hona avashyak hai. ap isamean sahayata kar sakate haian. "sujhav"

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is desh ke ghar-ghar aur mandiroan mean jisake shabd barasoan se gooanj rahe haian, duniya ke kisi bhi kone mean base kisi bhi sanatani hiandoo parivar mean aisa vyakti khojana mushkil hai jisake hraday-patal par bachapan ke sanskaroan mean usake likhe shabdoan ki chhap n p di ho. unake shabd uttar bharat se lekar dakshin bharat ke har ghar aur mandir me poori shradhda aur bhakti ke sath gae jate haian. bachche se lekar yuvaoan ko aur kuchh yad rahe ya n rahe isake bol itane sahaj, saral aur bhavapoorn hai ki ek do bar sunane matr se isaki har ek pankti dil aur dimag mean rach-bas jati hai. ham bat kar rahe haian desh aur duniyabhar ke karo doan hinduoan ke rag-rag mean basi om jay jagadish ki arati ki. hajaroan sal poorv hue hamare jnat-ajnat rrishiyoan ne paramatma ki prarthana ke lie jo bhi shlok aur bhakti git rache, om jay jagadish ki arati ki bhakti ras dhara ne un sabhi ko apane aandar samahit sa kar liya hai. yah ek arati sanskrit ke hajaroan shlokoan, stotroan aur mantroan ka nicho d hai.

karib dedh sau varsh mean mantr aur shastr ki tarah lokapriy ho gee om jay jagadish ki arati jaise bhavapoorn git ke rachayita the pandit shraddharam sharma (p. shraddharam phillauri). p. shradhdaram sharma ka janm 30 sitambar 1837 mean panjab (jalandhar) ke ludhiyana ke pas ek gaanv phillaur (phullaur) mean hua tha. unake pita jayadayalu khud ek achchhe jyotishi aur dharmik pravritti ke the. aise mean balak shraddharam ko bachapan se hi dharmik sanskar virasat mean mile the. unhoanne apane bete ka bhavishy padh liya tha aur bhavishyavani ki thi ki yah ek adbhut balak hoga. balak shradhdaram ko bachapan se hi dharmik sanskar to virasat mean hi mile the. shraddharam ji ne sanh 1844 mean arthath bachapan mean matr sat varsh ki umr mean hi gurumukhi bhasha sikh liya tha. das sal ki umr mean sanskrit, hindi, parshiyan (parasi), jyotish, aur sanskrit ki padhaee shuru ki aur kuchh hi varsho mean ve in sabhi vishayoan ke nishnat ho ge.

pandit shraddharam sharma hiandi ke hi nahian balki panjabi ke bhi shreshth sahityakaroan mean the, lekin unaka manana tha ki hiandi ke madhyam se is desh ke jyada se jyada logoan tak apani bat pahuanchaee ja sakati hai. unhoanne apane sahity aur vyakhyanoan se samajik kuritiyoan aur aandhavishvasoan ke khilaph jabardast mahaul banaya.

pan. shradhdaram ne sanh 1866 mean panjabi (guroomukhi) mean prakashan 'sikhoan de raj di vithiya' aur 'panjabi batachit' jaisi kitabean likhakar mano kraanti hi kar di. apani pahali hi kitab 'sikhoan de raj di vithiya' se ve panjabi sahity ke pitripurush ke roop mean pratishthit ho ge. bad mean is rachana ka roman mean anuvad bhi hua. is pustak me sikh dharm ki sthapana aur isaki nitiyoan ke bare mean bahut saragarbhit roop se bataya gaya tha. pustak mean tin adhyay hai. isake aantim adhyay mean panjab ki sankriti, lok paranparaoan, lok sangit adi ke bare mean vistrit janakari di gee thi. aangrej sarakar ne tab hone vali aeesies (jisaka bharatiy nam ab aeeees ho gaya hai) pariksha ke kors mean is pustak ko shamil kiya tha.

shraddharam phillauri ji ka gurumukhi aur hindi sahity mean mahatvapoorn yogadan raha hai. 32 varsh ki umr mean pandit shraddharam sharma ne 1870 mean unhoanne om jay jagadish ki arati ki rachana ki. p. shradhdaram ki vidvata aur bharatiy dharmik vishayoan par unaki vaijnanik drishti ke log kayal ho ge the. jagah-jagah par unako dharmik vishayoan par vyakhyan dene ke lie amantrit kiya jata tha aur tab hajaroan ki sankhya mean log unako sunane ate the. ve logoan ke bich jab bhi jate apani likhi om jay jagadish ki arati gakar sunate. unaki arati sunakar to mano log besudh se ho jate the. arati ke bol logoan ki juban par aise chadhe ki aj kee pidhiyaan gujar jane ke bad bhi unake shabdoan ka jadoo kayam hai.

unhoanne dharmik kathaoan aur akhyanoan ka udhdaran dete hue aangreji hukumat ke khilaph janajagaran ka aisa vatavaran taiyar kar diya ki aangreji sarakar ki niand u d gee. shri shraddharam ji ko desh ke svatantrata andolanoan mean bhag lene tatha apane bhashanoan mean mahabharat ke uddharanoan ka ullekh karate hue british sarakar ko ukha d pheankane ka sandesh dete the aur logoan mean kraantikari vichar paida karate the. pandit shraddharam sharma ki gatividhiyoan se tang akar 1865 mean british sarakar ne unako unake gaanv phullauri se nishkasit kar diya aur asapas ke gaanvoan tak mean unake pravesh par pabandi laga di gee. jabaki unaki likhi kitabean skooloan mean padhaee jati rahi.

pan. shradhdaram khud jyotish ke achchhe jnata the aur amritasar se lekar lahaur tak unake chahane vale the isalie is nishkasan ka un par koee asar nahian hua, balki unaki lokapriyata aur badh gee. log unaki batean sunane ko aur unase milane ko utsuk rahane lage. isi dauran unhoanne hindi mean jyotish par kee kitabean bhi likhi. lekin ek isaee padari phadar nyootan jo pan. shradhdaram ke kraantikari vicharoan se behad prabhavit the, ke hastakshep par aangrej sarakar ko tho de hi dinoan mean unake nishkasan ka adesh vapas lena p da. pan. shradhdaram ne padari ke kahane par sanh 1868 mean baeebil ke kuchh aanshoan ka gurumukhi mean anuvad kiya tha. pan. shradhdaram ne apane vyakhyanoan se logoan mean aangrej sarakar ke khilaph kraanti ki mashal hi nahian jalaee balki saksharata ke lie bhi zabardast kam kiya.

aj jis panjab mean sabase jyada kanyaoan ki bhroon hatyaean hoti hai isaka ehasas unhoanne bahut pahale kar liya tha aur is vishay par unhoanne ‘bhagyavati‘ upanyas likhakar samaj ko cheta diya tha. shri shraddharam ko bharat ke pratham upanyasakar ke roop mean bhi jana jata hai. 1877 mean bhagyavati namak ek upanyas prakashit hua (jise hindi ka pahala upanyas mana jata hai), is upanyas ki pahali samiksha aprail 1887 mean hindi ki masik patrika pradip mean prakashit huee thi. upanyas 'bhagyavati' jisako nirmal prakashan ne san 1888 mean prakashit kiya tha. ise panjab sahit desh ke kee rajyo ke skooloan mean kee saloan tak padhaya jata raha. is upanyas mean unhoanne kashi ke ek pandit umadatt ki beti bhagavati ke kiradar ke madhyam se bal vivah par zabardast chot ki. is upanyas mean unhoanne bharatiy stri ki dasha aur usake adhikaroan ko lekar kraantikari vichar prastut kie.

pan. shradhdaram ke jivan aur unake dvara likhi gee pustakoan par guroo nanak vishvavidyalay ke hindi vibhag ke din aur vibhagadhyksh shri d aau. haramiandar sianh ne zabardast shodh kar tin sanskaranoan mean shradhdaram granthavali ka prakashan bhi kiya hai. unaka manana hai ki pan. shradhdaram ka yah upanyas hindi sahity ka pahala upanyas hai. lekin yah matr hindi ka hi pahala upanyas nahian tha balki kee mayanoan mean yah pahala tha. unake upanyas ki nayika bhagyavati pahali beti paida hone par samaj ke logoan dvar majak uda़e jane par apane pati ko kahati hai ki kisi l dake aur l daki mean koee phark nahian hai. unhoanne is upanyas ke jarie bal vivah jaisi kupratha par zabardast chot ki. unhoanne tab l dakiyoan ko padhane ki vakalat ki jab l dakiyoan ko ghar se bahar tak nahian nikalane diya jata tha, paranparaoan, kuprathaoan aur rudhiyoan par chot karate rahane ke bavajood ve logoan ke bich lokapriy bane rahe. jabaki vah ek aisa daur tha jab koee vyakti aandhavishvasoan aur dharmik rudhiyoan ke khilaph kuchh bolata tha to poora samaj usake khilaph ho jata tha. nishchay hi unake aandar apani bat ko kahane ka sahas aur use logoan tak pahuanchane ki jabardast kshamata thi.

hindi ke jane mane lekhak aur sahityakar pan. ramachandr shukl ne pan. shradhdaram sharma aur bharateandu harishchandr ko hindi ke pahale do lekhakoan mean mana hai. pan. shradhdaram sharma hindi ke hi nahian balki panjabi ke bhi shreshth sahityakaroan mean the, lekin unaka manana tha ki hindi ke madhyam is desh ke jyada se jyada logoan tak apani bat pahuanchaee ja sakati hai. shri shraddharam phillauri ka svargavas matr 44 varsh ki alpayu mean 24 joon 1881 ko lahaur mean hua.



panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh


bahari k diyaan

sanbandhit lekh