Difference between revisions of "मुकरी (पहेली)"

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*मुकरी लोकप्रचलित [[पहेली|पहेलियों]] का ही एक रूप है, जिसका लक्ष्य मनोरंजन के साथ-साथ बुद्धिचातुरी की परीक्षा लेना होता है।  
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{{बहुविकल्पी|मुकरी}}
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'''मुकरी''' लोकप्रचलित [[पहेली|पहेलियों]] का ही एक रूप है, जिसका लक्ष्य मनोरंजन के साथ-साथ बुद्धिचातुरी की परीक्षा लेना होता है।  
 
*इसमें जो बातें कही जाती हैं, वे [[द्वयर्थक]] या श्लिष्ट होती है, पर उन दोनों अर्थों में से जो प्रधान होता है, उससे मुकरकर दूसरे अर्थ को उसी [[छन्द]] में स्वीकार किया जाता है, किन्तु यह स्वीकारोक्ति वास्तविक नहीं होती। अर्थात् पर बाद में उस कही हुई बात से मुकरकर उसकी जगह कोई दूसरी उपयुक्त बात बनाकर कह दी जाती है। जिससे सुननेवाला कुछ का कुछ समझने लगता है।
 
*इसमें जो बातें कही जाती हैं, वे [[द्वयर्थक]] या श्लिष्ट होती है, पर उन दोनों अर्थों में से जो प्रधान होता है, उससे मुकरकर दूसरे अर्थ को उसी [[छन्द]] में स्वीकार किया जाता है, किन्तु यह स्वीकारोक्ति वास्तविक नहीं होती। अर्थात् पर बाद में उस कही हुई बात से मुकरकर उसकी जगह कोई दूसरी उपयुक्त बात बनाकर कह दी जाती है। जिससे सुननेवाला कुछ का कुछ समझने लगता है।
 
*[[हिन्दी]] में [[अमीर खुसरो]] ने इस लोककाव्य-रूप को साहित्यिक रूप दिया।  
 
*[[हिन्दी]] में [[अमीर खुसरो]] ने इस लोककाव्य-रूप को साहित्यिक रूप दिया।  
 
*[[अलंकार]] की दृष्टि से इसे छेकापह्नुति कर सकते हैं, क्योंकि इसमें प्रस्तुत अर्थ को अस्वीकार करके अप्रस्तुत को स्थापित किया जाता है।<ref>'अपह्नुतिह' डॉ. शम्भुनाथ सिंह, गोवर्धन सराय, [[वाराणसी]]</ref>
 
*[[अलंकार]] की दृष्टि से इसे छेकापह्नुति कर सकते हैं, क्योंकि इसमें प्रस्तुत अर्थ को अस्वीकार करके अप्रस्तुत को स्थापित किया जाता है।<ref>'अपह्नुतिह' डॉ. शम्भुनाथ सिंह, गोवर्धन सराय, [[वाराणसी]]</ref>
*हिंदी में अमीर खुसरो की मुकरियाँ प्रसिद्ध हैं।  
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*हिन्दी में अमीर खुसरो की मुकरियाँ प्रसिद्ध हैं।  
 
*इसी को ‘कह-मुकरी’ भी कहते हैं।
 
*इसी को ‘कह-मुकरी’ भी कहते हैं।
*अमीर ख़ुसरो ने मुकरी का एक बहुत जीवंत उदाहरण दिया है। उन्होंने कहा है—
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*[[अमीर ख़ुसरो]] ने मुकरी का एक बहुत जीवंत उदाहरण दिया है। उन्होंने कहा है—
 
<blockquote>'''सगरि रैन वह मो संग जागा।'''<br />
 
<blockquote>'''सगरि रैन वह मो संग जागा।'''<br />
 
'''भोर भई तब बिछुरन लागा।''' <br />
 
'''भोर भई तब बिछुरन लागा।''' <br />
 
'''वाके बिछरत फाटे हिया।''' <br />
 
'''वाके बिछरत फाटे हिया।''' <br />
 
'''क्यों सखि साजन ना सखि दिया'''- '''खुसरो'''</blockquote>
 
'''क्यों सखि साजन ना सखि दिया'''- '''खुसरो'''</blockquote>
{{प्रचार}}
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{{लेख प्रगति
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; एक अन्य उदाहरण
|आधार=आधार1
+
<blockquote>
|प्रारम्भिक=
+
जैसे चाहे वह तन छूता।<br />
|माध्यमिक=
+
उसको रोके, किसका बूता।<br />
|पूर्णता=
+
करता रहता अपनी मर्जी। <br />
|शोध=
+
क्या सखि, साजन ? ना सखि, दर्जी। -[[त्रिलोक सिंह ठकुरेला]]</blockquote>
}}
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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[[Category:शब्द संदर्भ कोश]]
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Latest revision as of 07:40, 16 December 2015

mukari lokaprachalit paheliyoan ka hi ek roop hai, jisaka lakshy manoranjan ke sath-sath buddhichaturi ki pariksha lena hota hai.

  • isamean jo batean kahi jati haian, ve dvayarthak ya shlisht hoti hai, par un donoan arthoan mean se jo pradhan hota hai, usase mukarakar doosare arth ko usi chhand mean svikar kiya jata hai, kintu yah svikarokti vastavik nahian hoti. arthath par bad mean us kahi huee bat se mukarakar usaki jagah koee doosari upayukt bat banakar kah di jati hai. jisase sunanevala kuchh ka kuchh samajhane lagata hai.
  • hindi mean amir khusaro ne is lokakavy-roop ko sahityik roop diya.
  • alankar ki drishti se ise chhekapahnuti kar sakate haian, kyoanki isamean prastut arth ko asvikar karake aprastut ko sthapit kiya jata hai.[1]
  • hindi mean amir khusaro ki mukariyaan prasiddh haian.
  • isi ko ‘kah-mukari’ bhi kahate haian.
  • amir khusaro ne mukari ka ek bahut jivant udaharan diya hai. unhoanne kaha hai—

sagari rain vah mo sang jaga.

bhor bhee tab bichhuran laga.
vake bichharat phate hiya.

kyoan sakhi sajan na sakhi diya- khusaro

ek any udaharan

jaise chahe vah tan chhoota.
usako roke, kisaka boota.
karata rahata apani marji.

kya sakhi, sajan ? na sakhi, darji. -trilok sianh thakurela

tika tippani aur sandarbh

  1. 'apahnutih' d aau. shambhunath sianh, govardhan saray, varanasi