Difference between revisions of "राष्‍ट्रीय गीत"

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(वन्दे मातरम् को अनुप्रेषित (रिडायरेक्ट))
 
(2 intermediate revisions by the same user not shown)
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Vande-Mataram.jpg|thumb|250px|वन्दे मातरम्<br />Vande Mataram]]
+
#REDIRECT [[वन्दे मातरम्]]
{{tocright}}
 
[[भारत]] के राष्ट्रीय गीत '''वंदे मातरम्''' की रचना [[बंकिमचंद्र चटर्जी]] द्वारा की गई थी। इन्होंने [[7 नवम्बर]], [[1876]] ई. में [[बंगाल]] के कांतल पाडा नामक गाँव में इस गीत की रचना की थी। वंदे मातरम् गीत के प्रथम दो पद [[संस्कृत]] में तथा शेष पद [[बंगाली भाषा]] में थे। [[राष्ट्रकवि]] [[रवींद्रनाथ टैगोर]] ने इस गीत को स्वरबद्ध किया और पहली बार [[1896]] में [[कांग्रेस]] के [[कांग्रेस अधिवेशन कलकत्ता|कलकत्ता अधिवेशन]] में यह गीत गाया गया। [[अरबिंदो घोष]] ने इस गीत का [[अंग्रेज़ी]] में और [[आरिफ़ मौहम्मद ख़ान]] ने इसका [[उर्दू]] में अनुवाद किया। 'वंदे मातरम्' का स्‍थान राष्टीय गान 'जन गण मन' के बराबर है। यह गीत स्‍वतंत्रता की लड़ाई में लोगों के लिए प्ररेणा का स्रोत था।
 
==पद==
 
वंदे मातरम् गीत का प्रथम पद इस प्रकार है-
 
 
 
<blockquote><span style="color: maroon"><poem>
 
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
 
सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्,
 
शस्यश्यामलाम्, मातरम्!
 
वंदे मातरम्!
 
शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्,
 
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्,
 
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्,
 
सुखदाम् वरदाम्, मातरम्!
 
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥
 
</poem></span></blockquote>
 
====अरबिन्द का अनुवाद====
 
गद्य रूप में श्री अरबिन्‍द घोष द्वारा किए गए [[अंग्रेज़ी]] अनुवाद का [[हिन्दी भाषा|हिन्‍दी]] अनुवाद इस प्रकार है-
 
<poem>
 
मैं आपके सामने नतमस्‍तक होता हूँ। ओ माता,
 
पानी से सींची, फलों से भरी,
 
दक्षिण की वायु के साथ शान्‍त,
 
कटाई की फ़सलों के साथ गहरा,
 
माता!
 
उसकी रातें चाँदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही हैं,
 
उसकी ज़मीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुंदर ढकी हुई है,
 
हंसी की मिठास, वाणी की मिठास,
 
माता, वरदान देने वाली, आनंद देने वाली।
 
</poem>
 
==मूल गीत==
 
<poem>
 
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्
 
[[सस्य]] श्यामलां मातरंम् .
 
शुभ्र ज्योत्सनाम् पुलकित यामिनीम्
 
फुल्ल कुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
 
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम् .
 
सुखदां वरदां मातरम् ॥
 
{{दाँयाबक्सा|पाठ=गीत के पहले दो छंदों में मातृभूमि की सुंदरता का गीतात्मक वर्णन किया गया है, लेकिन [[1880]] के दशक के मध्य में गीत को नया आयाम मिलना शुरू हो गया। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि [[बंकिमचंद्र चटर्जी|बंकिमचंद्र]] ने [[1881]] में अपने उपन्यास '[[आनंदमठ]]' में इस गीत को शामिल कर लिया। उसके बाद कहानी की माँग को देखते हुए उन्होंने इस गीत को लंबा किया। बाद में जोड़े गए हिस्से में ही दशप्रहरणधारिणी ([[दुर्गा]]), कमला ([[लक्ष्मी]]) और वाणी ([[सरस्वती]]) के उद्धरण दिए गए हैं।|विचारक=}}
 
कोटि कोटि कन्ठ कलकल निनाद कराले
 
द्विसप्त कोटि भुजैर्ध्रत खरकरवाले
 
के बोले मा तुमी अबले
 
बहुबल धारिणीम् नमामि तारिणीम्
 
रिपुदलवारिणीम् मातरम् ॥
 
 
 
तुमि विद्या तुमि धर्म, तुमि ह्रदि तुमि मर्म
 
त्वं हि प्राणाः शरीरे
 
बाहुते तुमि मा शक्ति,
 
हृदये तुमि मा भक्ति,
 
तोमारै प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे ॥
 
 
 
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
 
कमला कमलदल विहारिणी
 
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्
 
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्
 
सुजलां सुफलां मातरम् ॥
 
 
 
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्
 
धरणीं भरणीं मातरम् ॥
 
</poem>
 
 
 
==गीत के राग व अवधि==
 
वर्षों से 'संगीत सरिता', 'स्वर सुधा' और 'राग-अनुराग' जैसे कार्यक्रम सुनने में आते रहे हैं। इन कार्यक्रमों से यह ज्ञात हो जाता है कि ढेर सारे फ़िल्मी गीत कौन-कौन से राग पर आधारित हैं। पर खेद है कि अब तक यह जानकारी नहीं मिल सकी कि राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् और [[राष्ट्रीय गान]] 'जन गन मन' किन रागों पर आधारित हैं। यह दोनों ही रचनाएँ [[बांग्ला भाषा]] के कवियों से निकली हैं। स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान रची गई इन रचनाओं को ये कवि स्वयं जन सभाओं में गाया करते थे, जिससे लगता है कि यह रचनाएँ रविन्द्र संगीत में निबद्ध है। राष्ट्रीय गान के तो रचनाकार ही [[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] हैं।
 
 
 
बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा रचित वंदे मातरम् तो बहुत लम्बी रचना है, जिसमें [[दुर्गा|माँ दुर्गा]] की शक्ति का भी बख़ान है, पर पहले अंतरे के साथ इसे सरकारी गीत के रूप में मान्यता मिली है और इसे राष्ट्रीय गीत का दर्ज़ा देकर इसकी न केवल धुन बल्कि गीत की अवधि तक संविधान सभा द्वारा तय की गई है, जो 52 सेकेण्ड है। इस तरह लगता है कि 'राष्ट्रीय गान' और 'राष्ट्रीय गीत' के न सिर्फ़ [[राग]] बल्कि इसमें बजने वाले साज़ भी लगभग तय है।
 
==निर्माण==
 
[[1870]] के दौरान [[अंग्रेज़]] हुक्मरानों ने 'गॉड सेव द क्वीन' गीत गाया जाना अनिवार्य कर दिया था। [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के इस आदेश से [[बंकिमचंद्र चटर्जी]] को, जो तब एक सरकारी अधिकारी थे, बहुत ठेस पहुँची और उन्होंने संभवत: [[1876]] में इसके विकल्प के तौर पर [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] और [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]] के मिश्रण से एक नए गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया "वंदे मातरम्"। शुरुआत में इसके केवल दो पद रचे गए थे, जो केवल संस्कृत में थे।
 
====गीत का विरोध====
 
गीत के पहले दो छंदों में मातृभूमि की सुंदरता का गीतात्मक वर्णन किया गया था, लेकिन [[1880]] के दशक के मध्य में गीत को नया आयाम मिलना शुरू हो गया। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि बंकिम चंद्र ने [[1881]] में अपने उपन्यास '[[आनंदमठ]]' में इस गीत को शामिल कर लिया। उसके बाद कहानी की माँग को देखते हुए उन्होंने इस गीत को और लंबा किया। बाद में जोड़े गए हिस्से में ही 'दशप्रहरणधारिणी'<ref>[[दुर्गा]]</ref>, कमला<ref>[[लक्ष्मी]]</ref> और वाणी<ref>[[सरस्वती]]</ref> के उद्धरण दिए गए हैं। लेखक होने के नाते बंकिमचंद्र को ऐसा करने का पूरा अधिकार था और इसको लेकर तुरंत कोई नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं हुई। यानी तब किसी ने ऐसा नहीं कहा कि यह मूर्ति की वंदना करने वाला गीत है या 'राष्ट्रगीत' नहीं है। काफ़ी समय बाद जब विभाजनकारी [[मुस्लिम]] और [[हिन्दू]] सांप्रदायिक ताकतें उभरीं तो यह राष्ट्रगीत से एक ऐसा गीत बन गया, जिसमें सांप्रदायिक निहितार्थ थे। [[1920]] और ख़ासकर [[1930]] के दशक में इस गीत का विरोध शुरू हुआ।<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.co.uk/hindi/regionalnews/story/2006/09/060904_spl_vande_sabyasachi.shtml |title=एक साहित्यिक रचना का राजनीतिकरण |accessmonthday=[[11 अक्तूबर]] |accessyear=[[2010]] |last=भट्टाचार्य |first=सव्यसाची |authorlink= |format= |publisher=एच टी एम एल |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
 
==इतिहास==
 
सन [[1905]] के [[बंगाल]] के स्वदेशी आंदोलन ने वंदे मातरम् को राजनीतिक नारे में तब्दील कर दिया। राष्ट्रवादी विरोध-प्रदर्शन की अगुआई करते हुए रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसे गाया और [[अरविंद घोष]] ने बंकिमचंद्र को '''राष्ट्रवाद का ऋषि''' कहकर पुकारा। सन [[1920]] तक सुब्रह्मण्यम भारती तथा दूसरों के हाथों विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनूदित होकर यह गीत राष्ट्रगान की हैसियत पा चुका था। बहरहाल, सन [[1930]] के दशक में वंदे मातरम् की इस हैसियत पर विवाद उठा और लोग इस गीत की मूर्ति-पूजकता को लेकर आपत्ति उठाने लगे। [[जवाहरलाल नेहरू]] के नेतृत्व में गठित एक समिति की सलाह पर [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] ने सन [[1937]] में इस गीत के उन अंशों को छाँट दिया, जिनमें बुतपरस्ती के भाव ज़्यादा प्रबल थे और गीत के संपादित अंश को राष्ट्रगान के रूप में अपना लिया।<ref>{{cite web |url=http://pustak.org/bs/home.php?bookid=6107 |title=वंदे मातरम् |accessmonthday=[[11 अक्तूबर]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=पुस्तक डॉट ओ आर जी |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
 
====राष्ट्रगीत का दर्जा====
 
जब आज़ाद [[भारत]] का नया संविधान लिखा जा रहा था, तब वंदे मातरम् को न राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया और न ही उसे राष्ट्रगीत का दर्ज़ा मिला। लेकिन संविधान सभा के अध्यक्ष और भारत के पहले [[राष्ट्रपति]] [[राजेन्द्र प्रसाद]] ने [[24 जनवरी]], [[1950]] को घोषणा की कि वंदे मातरम् को राष्ट्रगीत का दर्ज़ा दिया जा रहा है।<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.co.uk/hindi/regionalnews/story/2006/09/060904_spl_vande_sunil.shtml |title=वंदे मातरम् से जुड़े हैं अनेक पहलू |accessmonthday=[[11 अक्तूबर]] |accessyear=[[2010]] |last=रामन |first=सुनील |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=बीबीसी |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
 
==स्वाधीनता संग्राम में राष्ट्रगीत की भूमिका==
 
बंगाल में चले आज़ादी के आंदोलन में विभिन्न रैलियों में जोश भरने के लिए यह गीत गाया जाने लगा। धीरे-धीरे यह गीत लोगों में लोकप्रिय हो गया। ब्रिट्रानी हुकूमत इसकी लोकप्रियता से सशंकित हो उठी और उसने इस पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करना शुरू कर दिया। [[1896]] में [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के '[[कांग्रेस अधिवेशन कलकत्ता|कलकत्ता अधिवेशन]]' में भी [[रवीन्द्रनाथ टैगोर|गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर]] ने यह गीत गाया। पाँच साल बाद यानी [[1901]] में कलकत्ता में हुए एक अन्य अधिवेशन में चरन दास ने यह गीत पुनः गाया। [[1905]] में [[बनारस]] में हुए अधिवेशन में इस गीत को [[सरला देवी]] ने स्वर दिया।
 
 
 
कांग्रेस के अधिवेशनों के अलावा भी आज़ादी के आंदोलन के दौरान इस गीत के प्रयोग के काफ़ी उदाहरण मौजूद हैं। [[लाला लाजपत राय]] ने [[लाहौर]] से जिस जर्नल का प्रकाशन शुरू किया, उसका नाम 'वंदे मातरम' रखा। अंग्रेज़ों की गोली का शिकार बनकर दम तोड़ने वाली आज़ादी की दीवानी [[मातंगिनी हज़ारा]] की जुबान पर आख़िरी शब्द 'वंदे मातरम' ही थे। सन [[1907]] में मैडम भीकाजी कामा ने जब जर्मनी के स्टटगार्ट में [[तिरंगा]] फहराया तो उसके मध्य में 'वंदे मातरम्' ही लिखा हुआ था।
 
 
 
==गीत के ऐतिहासिक तथ्य==
 
*[[7 नवंबर]] [[1876]] में बंगाल के कांतल पाडा गांव में बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने 'वंदे मातरम' की रचना की थी।
 
*[[1882]] में वंदे मातरम बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय के प्रसिद्ध उपन्यास '[[आनंदमठ]]' में सम्मिलित हुआ।
 
*[[1896]] में रवीन्द्र नाथ टैगोर ने पहली बार ‘वंदे मातरम’ को बंगाली शैली में लय और संगीत के साथ कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन में गाया।
 
*मूलरूप से ‘वंदे मातरम’ के प्रारंभिक दो पद संस्कृत में थे, जबकि शेष गीत [[बांग्ला भाषा]] में।
 
*वंदे मातरम् का अंग्रेज़ी अनुवाद सबसे पहले अरविंद घोष ने किया।
 
*[[दिसम्बर]] 1905 में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में गीत को राष्ट्रगीत का दर्ज़ा प्रदान किया गया, बंग भंग आंदोलन में ‘वंदे मातरम्’ राष्ट्रीय नारा बना।
 
*[[1906]] में ‘वंदे मातरम’ [[देवनागरी लिपि]] में प्रस्तुत किया गया, कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने इसका संशोधित रूप प्रस्तुत किया।
 
*[[1923]] में कांग्रेस अधिवेशन में वंदे मातरम् के विरोध में स्वर उठे।
 
*[[जवाहर लाल नेहरु|पं. नेहरू]], [[मौलाना अबुल कलाम आज़ाद]], [[सुभाष चंद्र बोस]] और [[आचार्य नरेन्द्र देव]] की समिति ने [[28 अक्तूबर]] [[1937]] को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में पेश अपनी रिपोर्ट में इस राष्ट्रगीत के गायन को अनिवार्य बाध्यता से मुक्त रखते हुए कहा था कि इस गीत के शुरुआती दो पद ही प्रासंगिक है, इस समिति का मार्गदर्शन रवीन्द्र नाथ टैगोर ने किया।
 
*[[14 अगस्त]] [[1947]] की रात्रि में संविधान सभा की पहली बैठक का प्रारंभ ‘वंदे मातरम’ के साथ और समापन ‘जन गण मन...’ के साथ हुआ।
 
*[[1950]] ‘वंदे मातरम’ राष्ट्रीय गीत और ‘जन गण मन’ राष्ट्रीय गान बना।
 
*[[2002]] बी.बी.सी. के एक सर्वेक्षण के अनुसार ‘वंदे मातरम्’ विश्व का दूसरा सर्वाधिक लोकप्रिय गीत है।<ref>{{cite web |url=http://www.hindimedia.in/content/view/455/57/index.php?option=com_content&task=view&id=3118&Itemid=139 |title=‘वंदे मातरम्’ को सांप्रदायिक कहना शहीदों का अपमान है |accessmonthday=[[11 अक्तूबर]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=हिन्दी मीडिया |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
 
 
 
==राष्ट्रगीत का महत्त्व==
 
राष्ट्रीय एकता को मज़बूत करने में गीत, [[संगीत]] और [[नृत्य]] की महत्त्व भूमिका होती है। लोगों को एकसूत्र में बांधने के साथ ही संगीत मन को खुशी भी देती है। सर्वप्रथम 1882 में प्रकाशित यह गीत को पहले-पहल [[7 सितंबर]], [[1905]] में [[कांग्रेस अधिवेशन]] में राष्ट्रगीत का दर्ज़ा दिया गया। इसीलिए [[2005]] में इसके सौ साल पूरे होने के उपलक्ष में एक साल के समारोह का आयोजन किया गया। 7 सितंबर, [[2006]] में इस समारोह के समापन के अवसर पर 'मानव संसाधन मंत्रालय' ने इस गीत को स्कूलों में गाए जाने पर बल दिया। हालांकि इसका विरोध होने पर उस समय के 'मानव संसाधन विकास मंत्री' [[अर्जुन सिंह]] ने [[संसद]] में कहा कि गीत गाना किसी के लिए आवश्यक नहीं किया गया है, यह स्वेच्छा पर निर्भर करता है।
 
 
 
{{लेख प्रगति |आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता=|शोध=}}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
*[http://www.youtube.com/watch?v=3g8nQuX8dUg&feature=player_embedded राष्‍ट्रीय गीत विडियो]
 
*[http://www.bbc.co.uk/hindi/regionalnews/story/2006/09/060904_profile_bankim.shtml और भी बहुत कुछ लिखा है बंकिम चंद्र ने]
 
 
 
==संबंधित लेख==
 
{{राष्ट्रीय चिह्न और प्रतीक}}{{भारत गणराज्य}}
 
[[Category:राष्ट्रीय_चिह्न_और_प्रतीक]]
 
__INDEX__
 

Latest revision as of 08:05, 8 April 2013