कहा करौं वैकुण्ठ लै -रहीम
कहा करौं वैकुण्ठ लै, कल्पबृच्छ की छांह।
‘रहिमन’ ढाक सुहावनो, जो गल पीतम-बाँह॥
- अर्थ
वैकुण्ठ जाकर कल्पवृक्ष की छांहतले बैठने में रक्खा क्या है, यदि वहां प्रियतम पास न हो। उससे तो ढाक का पेड़ ही सुखदायक है, यदि उसकी छांह में प्रियतम के साथ गलबाँह देकर बैठने को मिले।
left|50px|link=रहिमन प्रीति सराहिये -रहीम|पीछे जाएँ | रहीम के दोहे | right|50px|link=जे सुलगे ते बुझ गए -रहीम|आगे जाएँ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख