काह कामरी पामड़ी -रहीम

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search

काह कामरी पामड़ी, जाड़ गए से काज ।
‘रहिमन’ भूख बुताइए, कैस्यो मिले अनाज ॥

अर्थ

क्या तो कम्बल और क्या मखमल का कपड़ा। असल में काम का तो वही है, जिससे कि जाड़ा चला जाय। खाने को चाहे जैसा अनाज मिल जाय, उससे भूख बुझनी चाहिए।[1]


left|50px|link=कहु रहीम कैतिक रही -रहीम|पीछे जाएँ रहीम के दोहे right|50px|link=कैसे निबहै निबल जन -रहीम|आगे जाएँ

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. तुलसीदास जी ने भी यही बात कही है कि- "का भाषा, का संस्कृत, प्रेम चाहिए साँच। काम जो आवै कामरी, का लै करै कमाच ॥"

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः