जिहि अंचल दीपक दुर्यो -रहीम
जिहि अंचल दीपक दुर्यो, हन्यो सो ताही गात।
‘रहिमन’ असमय के परे, मित्र सत्रु ह्वै जात॥
- अर्थ
साड़ी के जिस अंचल से दीपक को छिपाकर एक स्त्री पवन से उसकी रक्षा करती है, दीपक उसी अंचल को जला डालता है। बुरे दिन आते हैं, तो मित्र भी शत्रु हो जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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