तबही लौं जीवो भलो -रहीम
तबही लौं जीवो भलो, दीबो होय न धीम ।
जग में रहिबो कुचित गति, उचित होय ‘रहीम’ ॥
- अर्थ
जीना तभी तक अच्छा है, जब तक कि दान देना कम न हो संसार में दान-रहित जीवन कुत्सित है। उसे सफल कैसे कहा जा सकता है ?
left|50px|link=जो विषया संतन तजी -रहीम|पीछे जाएँ | रहीम के दोहे | right|50px|link=थोथे बादर क्वार के -रहीम|आगे जाएँ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख