धनि रहीम गति मीन की -रहीम

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धनि ‘रहीम’ गति मीन की, जल बिछुरत जिय जाय।
जियत कंज तजि अनत बसि, कहा भौर को भाय॥

अर्थ

धन्य है मछली की अनन्य प्रीति! प्रेमी से विलग होकर उस पर अपने प्राण न्यौछावर कर देती है। और, यह भ्रमर, जो अपने प्रियतम कमल को छोड़कर अन्यत्र उड़ जाता है।


left|50px|link=जाल परे जल जात बहि -रहीम|पीछे जाएँ रहीम के दोहे right|50px|link=प्रीतम छबि नैनन बसी -रहीम|आगे जाएँ

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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