नाद रीझि तन देत मृग -रहीम

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नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत ।
ते ‘रहीम’ पसु से अधिक, रीझेहु कछू न देत ॥

अर्थ

गान के स्वर पर रीझ कर मृग अपना शरीर शिकारी को सौंप देता है। और मनुष्य धन-दौलत पर प्राण गंवा देता है। परन्तु वे लोग पशु से भी गये बीते हैं, जो रीझ जाने पर भी कुछ नहीं देते।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सूम का यशोगान कितना सटीक हुआ है इस दोहे में।

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