बरु रहीम कानन भलो -रहीम
बरु ‘रहीम’ कानन भलो, वास करिय फल भोग ।
बंधु मध्य धनहीन ह्वै, बसिबो उचित न योग ॥
- अर्थ
निर्धन हो जाने पर बन्धु-बान्धवों के बीच रहना उचित नहीं। इससे तो वन में जाकर वस जाना और वहाँ के फलों पर गुजर करना कहीं अच्छा है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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