मुनि-नारी पाषान ही -रहीम

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मुनि-नारी पाषान ही, कपि,पशु,गुह मातंग।
तीनों तारे रामजू, तीनों मेरे अंग॥

अर्थ

राम ने पाषाणी अहल्या को तार दिया, वानर पशुओं को पार कर दिया और नीच जाति के उस गुह निषाद को भी! ये तीनों ही मेरे अंग-अंग में बसे हुए हैं– मेरा हृदय ऐसा कठोर है, जैसा पाषाण। मेरी वृत्तियां, मेरी वासनाएं पशुओं की जैसी हैं, और मेरा आचरण नीचतापूर्ण है। तब फिर, तुझे तारने में तुम्हे संकोच क्या हो रहा है, मेरे राम!


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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