यह न रहीम सराहिये -रहीम
यह न ‘रहीम’ सराहिये, देन-लेन की प्रीति।
प्रानन बाजी राखिये, हार होय कै जीत॥
- अर्थ
ऐसे प्रेम को कौन सराहेगा, जिसमें लेन-देन का नाता जुड़ा हो। प्रेम क्या कोई ख़रीद-फरोख्त की चीज है? उसमें तो लगा दिया जाय प्राणों का दांव, परवा नहीं कि हार हो या जीत।
left|50px|link=टूटे सुजन मनाइए -रहीम|पीछे जाएँ | रहीम के दोहे | right|50px|link=रहिमन मैन-तुरंग चढ़ि -रहीम|आगे जाएँ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख