रहिमन पैड़ा प्रेम को -रहीम

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‘रहिमन’ पैड़ा प्रेम को, निपट सिलसिली गैल।
बिलछत पांव पिपीलिको, लोग लदावत बैल॥

अर्थ

प्रेम की गली में कितनी ज्यादा फिसलन है! चींटी के भी पैर फिसल जाते हैं इस पर। और, हम लोगों को तो देखो, जो बैल लादकर चलने की सोचते हैं।[1]


left|50px|link=प्रीतम छबि नैनन बसी -रहीम|पीछे जाएँ रहीम के दोहे right|50px|link=रहिमन धागा प्रेम को -रहीम|आगे जाएँ

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. दुनिया भर का अहंकार सिर पर लाद कर कोई कैसे प्रेम के विकट मार्ग पर चल सकता है? वह तो फिसलेगा ही।

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