रहिमन बहु भेषज करत -रहीम
‘रहिमन’ बहु भेषज करत , व्याधि न छाँड़त साथ ।
खग, मृग बसत अरोग बन , हरि अनाथ के नाथ ॥
- अर्थ
कितने ही इलाज किये, कितनी ही दवाइयाँ लीं, फिर भी रोग ने पिंड नहीं छोड़ा। पक्षी और हिरण आदि पशु जंगल में सदा नीरोग रहते हैं भगवान् के भरोसे, क्योंकि वह अनाथों का नाथ है।
left|50px|link=रहिमन प्रीति न कीजिए -रहीम|पीछे जाएँ | रहीम के दोहे | right|50px|link=रहिमन भेषज के किए -रहीम|आगे जाएँ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख